प्र वो॑ दे॒वाया॒ग्नये॒ बर्हि॑ष्ठमर्चास्मै। गम॑द्दे॒वेभि॒रा स नो॒ यजि॑ष्ठो ब॒र्हिरा स॑दत्॥
pra vo devāyāgnaye barhiṣṭham arcāsmai | gamad devebhir ā sa no yajiṣṭho barhir ā sadat ||
प्र। वः॒। दे॒वाय॑। अ॒ग्नये॑। बर्हि॑ष्ठम्। अ॒र्च॒। अ॒स्मै॒। गम॑त्। दे॒वेभिः॑। आ। सः। नः॒। यजि॑ष्ठः। ब॒र्हिः। आ। स॒द॒त्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब सात ऋचावाले तेरहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।
हे मनुष्या यो देवेभिः सहास्मै देवायाग्नये वो युष्मानागमत्तं बर्हिष्ठं प्रार्च स यजिष्ठो नो बर्हिरासदत् ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात विद्वान व अग्नी यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.