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स के॒तुर॑ध्व॒राणा॑म॒ग्निर्दे॒वेभि॒रा ग॑मत्। अ॒ञ्जा॒नः स॒प्त होतृ॑भिर्ह॒विष्म॑ते॥

English Transliteration

sa ketur adhvarāṇām agnir devebhir ā gamat | añjānaḥ sapta hotṛbhir haviṣmate ||

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Pad Path

सः। के॒तुः। अ॒ध्व॒राणा॑म्। अ॒ग्निः। दे॒वेभिः॑। आ। ग॒म॒त्। अ॒ञ्जा॒नः। स॒प्त। होतृ॑ऽभिः। ह॒विष्म॑ते॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:10» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब उपदेशक का कर्तव्य कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वन् पुरुष ! जैसे (सः) वह (केतुः) ध्वजा के तुल्य प्रज्ञापक (अञ्जानः) दिव्य गुणों को प्रकट करता हुआ प्रसिद्ध (अग्निः) अग्नि (देवेभिः) दिव्य गुणोंवाले पदार्थों के तुल्य विद्वानों और (होतृभिः) ग्रहण करनेहारे (सप्त) पाँच प्राण, मन और बुद्धि के साथ (अध्वराणाम्) अहिंसारूप यज्ञों के सम्बन्धी (हविष्मते) प्रशस्त देने योग्य पदार्थोंवाले जन के लिये (आ, अगमत्) आवे प्राप्त होवे अर्थात् अग्निविद्यायुक्त होवे, वैसे तू प्राप्त हो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विज्ञान कर सम्यक् सेवन किया अग्नि दिव्य गुणों को देता है, वैसे ही सेवन किये आप्त विद्वान् जन अहिंसादि रूप धर्म को जताकर श्रोताओं के लिये दिव्य सुखों को देते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथोपदेशककृत्यमाह।

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा स केतुरञ्जानोऽग्निर्देवेभिः सप्त होतृभिः सहाऽध्वराणां हविष्मत आगमत्तथा त्वमागच्छ ॥४॥

Word-Meaning: - (सः) (केतुः) ध्वज इव प्रज्ञापकः (अध्वराणाम्) अहिंसामयानां यज्ञानाम् (अग्निः) पावकइव (देवेभिः) दिव्यगुणैः पदार्थैरिव विद्वद्भिः (आ) (अगमत्) आगच्छेत् (अञ्जानः) प्रसिद्धो दिव्यान् गुणान् प्रकटीकुर्वन् (सप्त) सप्तभिः पञ्चप्राणमनोबुद्धिभिः (होतृभिः) आदातृभिः (हविष्मते) प्रशस्तानि हवींषि दातव्यानि यस्य तस्मै ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विज्ञाय संसेवितोऽग्निर्दिव्यान् गुणान् प्रयच्छति तथैव सेवित्वा आप्ता विद्वांसोऽहिंसादिलक्षणं धर्मं विज्ञाप्य दिव्यानि सुखानि श्रोतृभ्यो ददति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विज्ञानाने सम्यक सेवन केलेला अग्नी दिव्य गुण देतो, तसेच आप्त विद्वान लोक अहिंसा इत्यादी लक्षणाने धर्म जाणवून देऊन श्रोत्यासाठी दिव्य सुख देतात. ॥ ४ ॥