Go To Mantra

आ दे॒वाना॑मभवः के॒तुर॑ग्ने म॒न्द्रो विश्वा॑नि॒ काव्या॑नि वि॒द्वान्। प्रति॒ मर्ताँ॑ अवासयो॒ दमू॑ना॒ अनु॑ दे॒वान्र॑थि॒रो या॑सि॒ साध॑न्॥

English Transliteration

ā devānām abhavaḥ ketur agne mandro viśvāni kāvyāni vidvān | prati martām̐ avāsayo damūnā anu devān rathiro yāsi sādhan ||

Mantra Audio
Pad Path

आ। दे॒वाना॑म्। अ॒भ॒वः॒। के॒तुः। अ॒ग्ने॒। म॒न्द्रः। विश्वा॑नि। काव्या॑नि। वि॒द्वान्। प्रति॑। मर्ता॑न्। अ॒वा॒स॒यः॒। दमू॑नाः। अनु॑। दे॒वान्। र॒थि॒रः। या॒सि॒। साध॑न्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:1» Mantra:17 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:17


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) तीव्र बुद्धिजन (केतुः) ज्ञानवान् (मन्द्रः) आनन्द के देनेवाले आप (विश्वानि) समस्त (काव्यानि) कवियों से निर्म्माण किये हुए शास्त्रों को अध्ययन कर (देवानाम्) देवों के बीच (विद्वान्) ज्ञानवान् (आ, अभवः) हो तथा (दमूनाः) जितेन्द्रिय (रथिरः) और प्रशंसित रथवाले (साधन्) साधना करते हुए आप (मर्तान्) मनुष्य जो (देवान्) विद्वान् उनके (प्रति) प्रति (अवासयः) निवास कराओ वा (अनु, यासि) उक्त मनुष्यों के प्रति अनुकूलता से प्राप्त होते हैं ॥१७॥
Connotation: - जो विद्वानों के बीच स्थित हो सब शास्त्रों का अध्ययन कर औरों को अध्ययन कराता है, वह सब सुखों को प्राप्त होता है ॥१७॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने केतुर्मन्द्रो भवान् विश्वानि काव्यान्यधीत्य देवानां विद्वानभवस्स दमूना रथिरः साधन्संस्त्वं मर्तान्देवान्प्रत्यावासयोऽनुयासि च ॥१७॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (देवानाम्) विदुषां मध्ये (अभवः) भव (केतुः) ज्ञानवान् (अग्ने) तीव्रबुद्धे (मन्द्रः) आनन्दप्रदः (विश्वानि) (काव्यानि) कविभिर्निर्मितानि (विद्वान्) यो वेत्ति (प्रति) (मर्तान्) मनुष्यान् (अवासयः) वासय (दमूनाः) जितेन्द्रियः (अनु) (देवान्) विदुषः (रथिरः) प्रशस्ता रथा विद्यन्ते यस्य सः (यासि) प्राप्नोषि (साधन्) संसाध्नुवन्। अत्र व्यत्ययेन् शप् ॥१७॥
Connotation: - यो विदुषाम्मध्ये स्थित्वा सर्वाणि शास्त्राण्यधीत्यान्यानध्यापयति स सर्वाणि सुखानि प्राप्नोति ॥१७॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जो विद्वानांमध्ये स्थिर असतो, सर्व शास्त्रांचे अध्ययन करून इतरांना अध्ययन करण्यास प्रवृत्त करतो, तो सुखी होतो. ॥ १७ ॥