पि॒तुश्च॒ गर्भं॑ जनि॒तुश्च॑ बभ्रे पू॒र्वीरेको॑ अधय॒त्पीप्या॑नाः। वृष्णे॑ स॒पत्नी॒ शुच॑ये॒ सब॑न्धू उ॒भे अ॑स्मै मनु॒ष्ये॒३॒॑ नि पा॑हि॥
pituś ca garbhaṁ janituś ca babhre pūrvīr eko adhayat pīpyānāḥ | vṛṣṇe sapatnī śucaye sabandhū ubhe asmai manuṣye ni pāhi ||
पि॒तुः। च॒। गर्भ॑म्। ज॒नि॒तुः। च॒। ब॒भ्रे॒। पू॒र्वीः। एकः॑। अ॒ध॒य॒त्। पीप्या॑नाः। वृष्णे॑। स॒पत्नी॒ इति॑ स॒पत्नी॑। शुच॑ये। सब॑न्धू इति॑ सऽब॑न्धू। उ॒भे इति॑। अ॒स्मै॒। म॒नु॒ष्ये॒३॒॑ इति॑। नि। पा॒हि॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
यथाऽस्मै शुचये वृष्णे सपत्नी गर्भं बभ्रे स एको गर्भः पितुश्च जनितुश्च सकाशाज्जन्म प्राप्य पूर्वीः पीप्याना अधयत्तथा उभे सबन्धू मनुष्ये गर्भं पातस्तथा हे विद्वन् एकः संस्त्वं सन्नि पाहि ॥१०॥
MATA SAVITA JOSHI
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