Go To Mantra

ए॒ष स्य ते॑ त॒न्वो॑ नृम्ण॒वर्ध॑नः॒ सह॒ ओजः॑ प्र॒दिवि॑ बा॒ह्वोर्हि॒तः। तुभ्यं॑ सु॒तो म॑घव॒न्तुभ्य॒माभृ॑त॒स्त्वम॑स्य॒ ब्राह्म॑णा॒दा तृ॒पत्पि॑ब॥

English Transliteration

eṣa sya te tanvo nṛmṇavardhanaḥ saha ojaḥ pradivi bāhvor hitaḥ | tubhyaṁ suto maghavan tubhyam ābhṛtas tvam asya brāhmaṇād ā tṛpat piba ||

Mantra Audio
Pad Path

ए॒षः। स्यः। ते॒। त॒न्वः॑। नृ॒म्ण॒ऽवर्ध॑नः। सहः॑। ओजः॑। प्र॒ऽदिवि॑। बा॒ह्वोः। हि॒तः। तुभ्य॑म्। सु॒तः। म॒घ॒व॒न्। तुभ्य॑म्। आऽभृ॑तः। त्वम्। अ॒स्य॒। ब्राह्म॑णात्। आ। तृ॒पत्। पि॒ब॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:36» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (मघवन्) अति उत्तम धनवाले ! जो (ते) आपके (तन्वः) शरीर के सम्बन्धी (प्रदिवि) अतीव प्रकाश में (सहः) बल (ओजः) पराक्रम तथा (बाह्वोः) भुजाओं के बीच (हितः) धारण (सुतः) और उत्पन्न किया हुआ (तुभ्यम्) आपके लिये और (आभृतः) अच्छे प्रकार पुष्ट किया पुत्र है (स्यः) जो (एषः) यह (नृम्णवर्धनः) धन का बढ़ानेवाला होता है (त्वम्) आप (अस्य) इसके सम्बन्धी (ब्राह्मणात्) ब्राह्मण से (तृपत्) तृप्त होते हुए (आ,पिब) अच्छे प्रकार ओषधि रस को पिओ ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो तुम्हारे के लिये शारीरिक और आत्मीय बल को बढ़ावे, उससे धन और उनकी अच्छे पदार्थों से सेवा करो ॥५॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मघवन् यस्ते तन्वः प्रदिवि सह ओजो बाह्वोर्हितस्तुभ्यं सुत आभृतोऽस्ति स्य एष नृम्णवर्धनो भवति त्वमस्य ब्राह्मणात्तृपत्सन्ना पिब ॥५॥

Word-Meaning: - (एषः) (स्यः) सः (ते) तव (तन्वः) शरीरस्य (नृम्णवर्धनः) धनवर्धनः (सहः) बलम् (ओजः) पराक्रमम् (प्रदिवि) प्रकृष्टप्रकाशे (बाह्वोः) भुजयोः (हितः) धृतः (तुभ्यम्) (सुतः) पुत्रः (मघवन्) प्रकृष्टधनः (तुभ्यम्) (आभृतः) समन्तात्पोषितः (त्वम्) (अस्य) (ब्राह्मणात्) (आ) (तृपत्) तृप्यतु (पिब) ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ये युष्मदर्थं शारीरकमात्मीयं च बलं वर्धयेयुस्तेन धनं तांश्चोत्तमैः पदार्थैस्सेवध्वम् ॥५॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जे तुमचे शारीरिक व आत्मिक बळ वाढवितात त्यांची धनाने व चांगल्या पदार्थांनी सेवा करा. ॥ ५ ॥