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ऋ॒तं दे॒वाय॑ कृण्व॒ते स॑वि॒त्र इन्द्रा॑याहि॒घ्ने न र॑मन्त॒ आपः॑। अह॑रहर्यात्य॒क्तुर॒पां किया॒त्या प्र॑थ॒मः सर्ग॑ आसाम्॥

English Transliteration

ṛtaṁ devāya kṛṇvate savitra indrāyāhighne na ramanta āpaḥ | ahar-ahar yāty aktur apāṁ kiyāty ā prathamaḥ sarga āsām ||

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Pad Path

ऋ॒तम्। दे॒वाय॑। कृ॒ण्व॒ते। स॒वि॒त्रे। इन्द्रा॑य। अ॒हि॒ऽघ्ने। न। र॒म॒न्ते॒। आपः॑। अहः॑ऽअहः। या॒ति॒। अ॒क्तुः। अ॒पाम्। किय॑ति। आ। प्र॒थ॒मः। सर्गः॑। आ॒सा॒म्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:30» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तीसवें सूक्त का आरम्भ है , इसके प्रथम मन्त्र में वायु और सूर्य का विषय कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो तुमको (तम्) जल को उत्पन्न (कृण्वते) करते हुए (सवित्रे) समस्त रसों के उत्पादक (अहिघ्ने) मेघ को काटने सूक्ष्मकर गिरानेहारे (इन्द्राय) उत्तम ऐश्वर्य के हेतु (देवाय) उत्तम गुणयुक्त सूर्य के लिये जो (अहरहः) प्रतिदिन (आपः) जल (न,रमन्ते) नहीं रमण करते अर्थात् सूर्य के आश्रय नहीं ठहरते (आसाम्) इन (अपाम्) जलों की (प्रथमः) पहली (सर्गः) उत्पत्ति (अक्तुः) प्रकटकर्त्ता सूर्य के सम्बन्ध से (कियति) कितने ही अवकाश में (आ,याति) अच्छे प्रकार प्राप्त होती है, उसको तुम जानो ॥१॥
Connotation: - जैसे अन्तरिक्षस्थ वायु में जल ठहरता है, वैसे सूर्य में नहीं ठहरता, सूर्यमण्डल से ही वर्षा द्वारा जल की प्रकटता होती है और यही सूर्य जल को ऊपर खींचता और वर्षाता है। जल की प्रथम सृष्टि अग्नि से ही होती है, ऐसा जानना चाहिये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वायुसूर्यविषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या युष्माभिरृतं कृण्वते सवित्रेऽहिघ्न इन्द्राय देवाय य अहरहरापो न रमन्त आसामपां प्रथमः सर्गोऽक्तुः कियत्यायाति तं यूयं विजानीत ॥१॥

Word-Meaning: - (तम्) उदकम् (देवाय) दिव्यगुणाय (कृण्वते) कुर्वते (सवित्रे) सकलरसोत्पादकाय सूर्याय (इन्द्राय) परमैश्वर्यहेतवे (अहिघ्ने) योऽहिं मेघं हन्ति तस्मै (न) निषेधे (रमन्ते) (आपः) जलानि (अहरहः) प्रतिदिनम् (याति) प्राप्नोति (अक्तुः) व्यक्तीकर्त्तुः (अपाम्) जलानाम् (कियति)। अत्र संहियायामिति दीर्घः (आ) (प्रथमः) (सर्गः) उत्पत्तिः (आसाम्) अपाम् ॥१॥
Connotation: - यथाऽन्तरिक्षस्थे वायौ जलमस्ति तथा सूर्ये न तिष्ठति सूर्यादेव वृष्टिद्वारा जलप्राकट्यं जायतेऽयमेवोपर्याकर्षति वर्षयति च जलस्यादिमा सृष्टिरग्नेरेव सकाशाज्जातेति वेदितव्यम् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात स्त्री-पुरुष, राजा-प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जसे अंतरिक्षातील वायूत जल असते, तसे ते सूर्यात नसते. सूर्यमंडलापासूनच वृष्टी जलरूपाने प्रकट होते. सूर्य जलाला वर आकर्षित करतो आणि वृष्टी करवितो. जलाची प्रथम उत्पत्ती अग्नीनेच होते हे जाणले पाहिजे. ॥ १ ॥