अपो॒ सु म्य॑क्ष वरुण भि॒यसं॒ मत्सम्रा॒ळृता॒वोऽनु॑ मा गृभाय। दामे॑व व॒त्साद्वि मु॑मु॒ग्ध्यंहो॑ न॒हि त्वदा॒रे नि॒मिष॑श्च॒नेशे॑॥
apo su myakṣa varuṇa bhiyasam mat samrāḻ ṛtāvo nu mā gṛbhāya | dāmeva vatsād vi mumugdhy aṁho nahi tvad āre nimiṣaś caneśe ||
अपो॒ इति॑। सु। म्य॒क्ष॒। व॒रु॒ण॒। भि॒यस॑म्। मत्। सम्ऽरा॑ट्। ऋत॒ऽवः। अनु॑। मा॒। गृ॒भा॒य॒। दाम॑ऽइव। व॒त्सात्। वि। मु॒मु॒ग्धि॒। अंहः॑। न॒हि। त्वत्। आ॒रे। नि॒ऽमिषः॑। च॒न। ईशे॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर अध्यापक और उपदेशक के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह।
हे वरुण त्वं मद्भियसमपो न्यक्ष। हे तावः सम्राट् त्वं मानुगृभाय वत्साद्गामिव मदंहः सु विमुमुग्धि त्वदारे निमिषश्चन कश्चिन्नहीशे ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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