सेमाम॑विड्ढि॒ प्रभृ॑तिं॒ य ईशि॑षे॒ऽया वि॑धेम॒ नव॑या म॒हा गि॒रा। यथा॑ नो मी॒ढ्वान्त्स्तव॑ते॒ सखा॒ तव॒ बृह॑स्पते॒ सीष॑धः॒ सोत नो॑ म॒तिम्॥
semām aviḍḍhi prabhṛtiṁ ya īśiṣe yā vidhema navayā mahā girā | yathā no mīḍhvān stavate sakhā tava bṛhaspate sīṣadhaḥ sota no matim ||
सः। इ॒माम्। अ॒वि॒ड्ढि॒। प्रऽभृ॑तिम्। यः। ईशि॑षे। अ॒या। वि॒धे॒म॒। नव॑या। म॒हा। गि॒रा। यथा॑। नः॒। मी॒ढ्वान्। स्तव॑ते। सखा॑। तव॑। बृह॑स्पते। सीस॑धः। सः। उ॒त। नः॒। म॒तिम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब द्वितीयाष्टक के सातवें अध्याय का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।
हे बृहस्पते विद्वन्नध्यापक यस्त्वमया नवया महा गिरेमां प्रभृतिं कर्त्तुमीशिषे स त्वमिमामविड्ढि। यथा तव मीढ्वान् सखा नः स्तवते यथा च स त्वं नो मतिमुत सीषधस्तथा च वयं विधेम ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात विद्वान व ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.