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उ॒ग्रेष्विन्नु शू॑र मन्दसा॒नस्त्रिक॑द्रुकेषु पाहि॒ सोम॑मिन्द्र। प्र॒दोधु॑व॒च्छ्मश्रु॑षु प्रीणा॒नो या॒हि हरि॑भ्यां सु॒तस्य॑ पी॒तिम्॥

English Transliteration

ugreṣv in nu śūra mandasānas trikadrukeṣu pāhi somam indra | pradodhuvac chmaśruṣu prīṇāno yāhi haribhyāṁ sutasya pītim ||

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Pad Path

उ॒ग्रेषु॑। इत्। नु। शू॒र॒। म॒न्द॒सा॒नः। त्रिऽक॑द्रुकेषु। पा॒हि॒। सोम॑म्। इ॒न्द्र॒। प्र॒ऽदोधु॑वत्। श्मश्रु॑षु। प्री॒णा॒नः। या॒हि। हरि॑ऽभ्याम्। सु॒तस्य॑। पी॒तिम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:11» Mantra:17 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (शूर) दुष्टों की हिंसा करने और (इन्द्र) वैद्य विद्या जाननेवाले ! आप (त्रिकद्रुकेषु) जिन व्यवहारों में तीन अर्थात् शरीर, आत्मा और मन की पीड़ा विद्यमान उनके निमित्त (सोमम्) महान् ओषधियों के समूह की (पाहि) रक्षा करो और (उग्रेषु) तेजस्वी प्रबल प्रतापवालों में (इत्) ही (मन्दसानः) कामना और (प्रदोधुवत्) उत्तमता से कम्पन अर्थात् नाना प्रकार की चेष्टा करते और (श्मश्रुषु) चिबुकादिक अङ्गों में (प्रीणानः) तृप्ति पाते हुए (हरिभ्याम्) अच्छे शिक्षित घोड़ों से (सुतस्य) निकले हुए ओषधियों के रस के (पीतिम्) पीने को (याहि) प्राप्त होओ ॥१७॥
Connotation: - जो मनुष्य प्रबल बुद्धिजनों के साथ अच्छे प्रकार कार्यों का प्रयोग करते हैं तो शत्रुओं को कंपाते ओर बड़ी-बड़ी ओषधियों के रस को पीवते हुए अच्छे सिखाये हुए घोड़ों से युक्त रथ से जैसे वैसे शीघ्र सुखों को प्राप्त होते हैं ॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे शूरेन्द्र त्वं त्रिकद्रुकेषु सोमं पाह्युग्रेष्विन्मन्दसानः प्रदोधुवच्छ्मश्रुषु प्रीणानो हरिभ्यां सुतस्य पीतिं नु याहि ॥१७॥

Word-Meaning: - (उग्रेषु) तेजस्विषु (इत्) एव (नु) सद्यः (शूर) दुष्टानां हिंसक (मन्दसानः) कामयमानः (त्रिकद्रुकेषु) त्रीणि कद्रुकाणि शरीरात्ममनःपीडनानि येषु तेषु व्यवहारेषु (पाहि) (सोमम्) महौषधिगणम् (इन्द्र) वैद्यकविद्यावित् (प्रदोधुवत्) प्रकृष्टतया कम्पयन् (श्मश्रुषु) चिबुकादिषु (प्रीणानः) तर्पयन् (याहि) गच्छ (हरिभ्याम्) सुशिक्षिताभ्यामश्वाभ्याम् (सुतस्य) निष्पन्नस्य (पीतिम्) पानम् ॥१७॥
Connotation: - यदि मनुष्याः प्रगल्भैर्जनैस्सह संयुञ्जते तर्हि शत्रून् कम्पयन्तो महौषधिरसं पिबन्ति सुशिक्षितैरश्वैर्युक्तेन रथेनेव सद्यः सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -जी माणसे प्रबळ बुद्धिमान लोकांबरोबर चांगल्या प्रकारे कार्य करतात, ती शत्रूंना कंपित करतात व प्रशिक्षित घोडे जसे रथाला जुंपले जातात तसे महाऔषधींचे रस प्राशन करून सुख मिळवितात. ॥ १७ ॥