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त्वे अ॑ग्ने॒ विश्वे॑ अ॒मृता॑सो अ॒द्रुह॑ आ॒सा दे॒वा ह॒विर॑द॒न्त्याहु॑तम्। त्वया॒ मर्ता॑सः स्वदन्त आसु॒तिं त्वं गर्भो॑ वी॒रुधां॑ जज्ञिषे॒ शुचिः॑॥

English Transliteration

tve agne viśve amṛtāso adruha āsā devā havir adanty āhutam | tvayā martāsaḥ svadanta āsutiṁ tvaṁ garbho vīrudhāṁ jajñiṣe śuciḥ ||

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Pad Path

त्वे इति॑। अ॒ग्ने॒। विश्वे॑। अ॒मृता॑सः। अ॒द्रुहः॑। आ॒सा। दे॒वाः। ह॒विः। अ॒द॒न्ति॒। आऽहु॑तम्। त्वया॑। मर्ता॑सः। स्व॒द॒न्ते॒। आ॒ऽसु॒तिम्। त्वम्। गर्भः॑। वी॒रुधा॑म्। ज॒ज्ञि॒षे॒। शुचिः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:1» Mantra:14 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान ! आप (त्वे) तुम्हारे होते (अद्रुहः) द्रोह छोड़े हुए (विश्वे) सब (अमृतासः) अपने-अपने रूप से जन्म-मरण रहित जीवात्मा जिनके वे (देवाः) विद्वान् जन (आहुतम्) प्राप्त होने योग्य पदार्थ को (आसा) मुख से (हविः) जो कि विद्वानों के खाने योग्य है (अदन्ति) खाते हैं तथा जिन (त्वया) आपकी प्रेरणा से (स्वदन्ते) सुन्दरता से भोजन करते हुए (मर्त्तासः) शरीर के योग से जन्म-मरण सहित मनुष्य (आसुतिम्) जन्मयोग अर्थात् विद्या जन्म का संयोग सेवते हैं। जो (त्वम्) आप (वीरुधाम्) लता वृक्षादिकों के बीच (गर्भः) गर्भरूप अग्नि जैसे वैसे हो कर (शुचिः) पवित्र होते हुए (जज्ञिषे) प्रसिद्ध होते हैं। उन आपका विद्या की प्राप्ति के लिये लोग आश्रय करते हैं ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब जीव विद्यमान अग्नि के होते जीने और भोजन करने को योग्य होते हैं, वैसे शास्त्रज्ञ धर्मात्मा पढ़ानेवालों के होते पवित्र राग-द्वेष रहित सांसारिक और पारमार्थिक सुख को प्राप्त हुए मुक्ति के बीच आनन्द करते हुए जन्मान्तर संस्कार में पवित्र होते हैं ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने त्वे सत्यद्रुहो विश्वेऽमृतासो देवा आहुत मासा हविरदन्ति येन त्वयासा स्वदन्तो मर्त्तास आसुतिं भजन्ते यस्त्वं वीरुधां गर्भोऽग्निवद्गर्भो भूत्वा शुचिस्सन् जज्ञिषे तं त्वां विद्याप्राप्तय आश्रयन्ति ॥१४॥

Word-Meaning: - (त्वे) त्वयि (अग्ने) अग्निवत् स्वप्रकाशक (विश्वे) सर्वे (अमृतासः) स्वस्वरूपेण जन्ममरणरहिता जीवात्मानः (अद्रुहः) त्यक्तद्रोहाः (आसा) मुखेन। अत्र छान्दसो वर्णलोप इति न लोपः। (देवाः) विद्वांसः (हविः) (अदन्ति) (आहुतम्) (त्वया) (मर्त्तासः) शरीरयोगेन जन्ममरणसहिताः (स्वदन्ते) सुष्ठु भुञ्जानाः (आसुतिम्) समन्ताज्जन्मभावम् (त्वम्) (गर्भः) कुक्षिस्थः (वीरुधाम्) लतावृक्षादीनां मध्ये (जज्ञिषे) जायसे (शुचिः) पवित्रः ॥१४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वे जीवा विद्यमानेऽग्नौ सति जीवितुं भोक्तुं चार्हन्ति तथाऽऽप्तेष्वध्यापकेषु सत्सु पवित्रा रागद्वेषरहिता भूत्वा ऐहिकं पारमार्थिकं सुखं प्राप्य मुक्तावानन्दिता जन्मान्तरसंस्कारे पवित्रा जायन्ते ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अग्नीमुळे सर्व जीव जगतात, अन्न खातात तसे शास्त्रज्ञ, धर्मात्मा, अध्यापक असतील तर पवित्र रागद्वेषरहित सांसारिक, पारमार्थिक सुख प्राप्त करून मुक्तीमध्ये आनंद भोगता येतो व जन्मजन्मान्तराचे संस्कार पवित्र होतात. ॥ १४ ॥