Go To Mantra

अग्ने॒ बाध॑स्व॒ वि मृधो॒ वि दु॒र्गहापामी॑वा॒मप॒ रक्षां॑सि सेध । अ॒स्मात्स॑मु॒द्राद्बृ॑ह॒तो दि॒वो नो॒ऽपां भू॒मान॒मुप॑ नः सृजे॒ह ॥

English Transliteration

agne bādhasva vi mṛdho vi durgahāpāmīvām apa rakṣāṁsi sedha | asmāt samudrād bṛhato divo no pām bhūmānam upa naḥ sṛjeha ||

Pad Path

अग्ने॑ । बाध॑स्व । वि । मृधः॑ । वि । दुः॒ऽगहा॑ । अप॑ । अमी॑वाम् । अप॑ । रक्षां॑सि । से॒ध॒ । अ॒स्मात् । स॒मु॒द्रात् । बृ॒ह॒तः । दि॒वः । नः॒ । अ॒पाम् । भू॒मान॑म् । उप॑ । नः॒ । सृ॒ज॒ । इ॒ह ॥ १०.९८.१२

Rigveda » Mandal:10» Sukta:98» Mantra:12 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:12


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (मृधः) हिंसकों को (वि बाधस्व) विशेषरूप से पीड़ित कर (दुर्गहा वि) दुःख से गाहने योग्य कष्टों को विशेषरूप से नष्ट कर (अमीवाम्-अप) रोगों को दूर कर (रक्षांसि-अप सेध) मध्य में आये राक्षसों-बाधकों को दूर कर (अस्मात्-बृहतः-दिवः समुद्रात्) मोक्षरूप आनन्द समुद्र से (नः) हमारे लिए (अपां भूमानम्) आनन्दरसों की बहुलता को (नः) हमारी ओर (इह सृज) यहाँ सृजन कर, प्रदान कर ॥१२॥
Connotation: - परमात्मा मुमुक्ष उपासक के पीड़कों गहन कष्टों और बाधकों को नष्ट करता है, मोक्षधाम के आनन्दरसों को उसकी ओर बढ़ाता है, उसे प्रदान करता है ॥१२॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) परमात्मन् ! (मृधः-वि बाधस्व) हिंसकान् विशेषेण पीडय (दुर्गहा वि) दुःखेन गाह्यानि कष्टानि विशेषेण नाशय (अमीवाम्-अप) रोगान् दूरीकुरु (रक्षांसि-अप सेध) राक्षसान् मध्ये बाधकान् दूरी कुरु (अस्मात्-बृहतः-दिवः समुद्रात्) एतस्मान्महतो मोक्षरूपात् समुद्रात् (नः) अस्मभ्यम् (अपां भूमानं नः-इह सृज) आनन्दरसानां बाहुल्यमस्मान्प्रति प्रयच्छ ॥१२॥