Word-Meaning: - (वसो त्वम्) हे स्वप्रकाशतेज से आच्छादन करनेवाले अग्नि ! सूर्यरूप ! तू (उषः उषः-हि) प्रत्येक उषोवेला-प्रति प्रातःकाल-निरन्तर (अग्रम्-एषि) मनुष्यों के सम्मुख प्राप्त होता है-उदय होता है (यमयोः-विभावा-अभवः) युगलरूप दिनरात का प्रकट करनेवाला है (ऋताय स्वायै तन्वे मित्रं जनयन्) यज्ञ-श्रेष्ठ कर्म के लिये अपने स्वरूप से अग्नि को उत्पन्न करनेहेतु (सप्त पदानि दधिषे) सात रङ्गवाली किरणों को धारण करता है ॥४॥
Connotation: - अग्निरूप सूर्य अपने प्रकाश या तेज से संसार को सुरक्षार्थ आच्छादित करता है, यज्ञादि श्रेष्ठकर्मों के संपादनार्थ अग्नि को पृथिवी पर प्रकट करता है, वह अग्नि सूर्य की सात रङ्गवाली किरणों द्वारा पृथिवी पर प्रकट होती है, सूर्यकान्त मणि के प्रयोग से कुत्रिम ढंग से भी प्रकट होती है। इसी प्रकार विद्वान् तथा राजा भी प्रति प्रातःकाल समाज या राष्ट्र के स्त्री-पुरुषों को बोध दे-सावधान करे। उन्हें उत्तम कार्य करने के लिये सप्तछन्दवाले ज्ञान को तथा सात मर्यादाओं की व्यवस्था को बनाये रखने के लिये प्रेरित करे ॥४॥