Word-Meaning: - (ये पितरः) जो ज्ञानप्रदान के द्वारा पालक विद्वान् या जो प्रकाशप्रदान द्वारा पालक किरणें हैं, वे (परिवत्सरे) सब ओर से आकर शिष्य बसते हैं जिसके अधीन, ऐसे आचार्य में-आचार्य के समीप अथवा सूर्य में (गोमयं वसु-उदाजन्) वाङ्मय धन को या रश्मिमय तेज को उत्थापित करते हैं, उत्पन्न करते हैं (ऋतेन बलम्-अभिनन्दन्) उसके ज्ञान के द्वारा या उसके अग्निरूप द्वारा आवरक अज्ञान को या अन्धकाररूप मेघ को छिन्न-भिन्न करते हैं, निवृत्त करते हैं (अङ्गिरसः-वः) हे आत्माओं के लिए ज्ञान के दाता अथवा तेज के प्रदाता ! तुम्हारे लिए (दीर्घायुत्वम्-अस्तु) दीर्घ जीवन या दीर्घ जीवन प्राप्त होने का क्रम होवे (प्रति गृभ्णीत....) पूर्ववत् ॥२॥
Connotation: - उत्तम आचार्य के अधीन विद्वान् शिष्यरूप में प्राप्त होते हैं। आचार्य उनके अज्ञान को नष्ट करके वाङ्मय ज्ञान को उत्थापित करता है। ऐसा आचार्य दीर्घजीवी होना चाहिए, जिससे संसार को लाभ पहुँचे। तथा-रश्मियाँ या किरणें सूर्य के आश्रित होती हैं। वह सूर्य अन्धकार को और मेघ को छिन्न-भिन्न करता है। उसका आग्नेय तेज संसार को प्रकाश प्रदान करता है। उसके प्रकाश का प्रदानक्रम दीर्घरूप में चलता रहे ॥२॥