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अ॒हं सूर्य॑स्य॒ परि॑ याम्या॒शुभि॒: प्रैत॒शेभि॒र्वह॑मान॒ ओज॑सा । यन्मा॑ सा॒वो मनु॑ष॒ आह॑ नि॒र्णिज॒ ऋध॑क्कृषे॒ दासं॒ कृत्व्यं॒ हथै॑: ॥

English Transliteration

ahaṁ sūryasya pari yāmy āśubhiḥ praitaśebhir vahamāna ojasā | yan mā sāvo manuṣa āha nirṇija ṛdhak kṛṣe dāsaṁ kṛtvyaṁ hathaiḥ ||

Pad Path

अ॒हम् । सूर्य॑स्य । परि॑ । या॒मि॒ । आ॒शुऽभिः । प्र । ए॒त॒शेभिः । वह॑मानः । ओज॑सा । यत् । मा॒ । सा॒वः । मनु॑षः । आह॑ । निः॒ऽनिजे॑ । ऋध॑क् । कृ॒षे॒ । दासम् । कृत्व्य॑म् । हथैः॑ ॥ १०.४९.७

Rigveda » Mandal:10» Sukta:49» Mantra:7 | Ashtak:8» Adhyay:1» Varga:8» Mantra:2 | Mandal:10» Anuvak:4» Mantra:7


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यत्-सावः-मनुषः-निर्णिजे मा-आह) जब उपासनारस का सम्पादन करनेवाला उपासक मनुष्यस्वरूप के सम्पादन के लिए मुझे कहता-प्रार्थना करता है (सूर्यस्य-आशुभिः-एतशेभिः) सूर्य की शीघ्रगामी किरणरूप अश्वों के द्वारा, जैसे सूर्य अपनी किरणों के द्वारा सर्वत्र गतिमान् होता है, वैसे (अहम्-ओजसा वहमानः परि यामि) मैं परमात्मा अपने ओजोबल से सब जगत् को वहन करता हुआ सर्वत्र प्राप्त होता हूँ, अतः (कृत्व्यं दासं हथैः-ऋधक्-कृषे) छेदनीय, क्षयकर्ता-उपासक के स्वरूप का नाशकर्ता अज्ञान या पाप को अपने हननसाधनों-ज्ञानप्रकाशों से मैं पृथक् करता हूँ ॥७॥
Connotation: - उपासना करनेवाला आत्मा अपने स्वरूप को प्राप्त करने के लिए परमात्मा की उपासना करता है, तो वह जगत् का वहनकर्ता-संचालक परमात्मा अपने बल से सर्वत्र प्राप्त होता हुआ उपासक के नष्ट करनेवाले अज्ञान या पाप को अपने प्रकाशों से नष्ट करता है ॥७॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यत्-सावः-मनुषः-निर्णिजे मा-आह) यदा खलूपासनारस-सम्पादकः उपासको मनुष्यः स्वरूपसम्पादनाय “परं ज्योतिरुपसम्पद्य स्वेन रूपेणाभिनिष्पद्यते” [छा० ८।३।४] “निर्णिक्-रूपनाम” [निघ० ३।७] मां वदति-प्रार्थयते वा (सूर्यस्य-आशुभिः-एतशेभिः) सूर्यस्य शीघ्रगामिभिः किरणरूपैरश्वैरिव, यथा सूर्यः स्वकिरणैः सर्वत्र गतिमान् भवति तथा (अहम्-ओजसा वहमानः-परियामि) अहं परमात्मा स्वौजोबलेन सर्वं जगद्वहमानः सन् सर्वत्र प्राप्नोमि, अतः (कृत्व्यं दासं हथैः-ऋधक्-कृषे) कर्तनीयं छेदनीयं क्षयकर्त्तारं खलूपासकस्य स्वरूपनाशकमज्ञानं पापं वा स्वकीयहनन-साधनैः-ज्ञानप्रकाशैः पृथक् करोमि ॥७॥