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समु॒ प्र य॑न्ति धी॒तय॒: सर्गा॑सोऽव॒ताँ इ॑व । क्रतुं॑ नः सोम जी॒वसे॒ वि वो॒ मदे॑ धा॒रया॑ चम॒साँ इ॑व॒ विव॑क्षसे ॥

English Transliteration

sam u pra yanti dhītayaḥ sargāso vatām̐ iva | kratuṁ naḥ soma jīvase vi vo made dhārayā camasām̐ iva vivakṣase ||

Pad Path

सम् । ऊँ॒ इति॑ । प्र । य॒न्ति॒ । धी॒तयः॑ । सर्गा॑सः । अ॒व॒तान्ऽइ॑व । क्रतु॑म् । नः॒ । सो॒म॒ । जी॒वसे॑ । वि । वः॒ । मदे॑ । धा॒रय॑ । च॒म॒सान्ऽइ॑व । विव॑क्षसे ॥ १०.२५.४

Rigveda » Mandal:10» Sukta:25» Mantra:4 | Ashtak:7» Adhyay:7» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:4


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (क्रतुम्) तुझ कार्यसाधक को (धीतयः) प्रज्ञाएँ तथा कर्म-प्रवृत्तियाँ (उ) निरन्तरम् (सं प्र यन्ति) सम्यक् प्राप्त होती हैं (सर्गासः-अवतान्-इव) उदक-प्रवाह जैसे निम्न प्रदेशों को प्राप्त होते हैं (नः जीवसे) हमारे जीवन के लिये (चमसान्-इव धारय) अपने आनन्द रस के पात्रभूत हम उपासकों को धारण कर, स्वीकार कर (वः मदे वि) तेरे हर्षनिमित्त शरण में हम विशेषरूप से रहें, (विवक्षसे) तू महान् है ॥४॥
Connotation: - उपासकों की प्रज्ञाएँ और कर्मप्रवृत्तियाँ परमात्मा की ओर ऐसे झुकी रहती हैं, जैसे जलप्रवाह निम्न स्थान की ओर झुके रहते हैं। वह हमारे जीवन के लिये हमें अपने आनन्दरसों का पात्र बनाता है। हमें उसकी शरण में रहना चाहिये ॥४॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (क्रतुम्) त्वां कार्यसाधकं (धीतयः) प्रज्ञाः कर्मप्रवृत्तयश्च “धीतिः प्रज्ञा” [निरुक्त १०।४४]  “धीतिभिः कर्मभिः” [निरु० ११।१६] (उ) निरन्तरम् (सम्प्रयन्ति) सम्यक् प्रगतिं कुर्वन्ति (सर्गासः-अवतान्-इव) उदकप्रवाहा यथा निम्नप्रदेशान् “सर्गाः उदकनाम” [निघं० १।१२] “अवतः कूपनाम” [निघं० ३।२३] (नः-जीवसे) अस्माकं जीवनाय (चमसान्-इव धारय) त्वमस्मान् चमसान् त्वदानन्दरसस्य पात्रभूतान् धारय-स्वीकुरु (वः मदे वि) तव हर्षनिमित्ते शरणे वयं विशिष्टतया स्याम (विवक्षसे) त्वं महानसि ॥४॥