Word-Meaning: - (अयम्-उ स्यः) यही वह (देवयुः-होता) हमारे लिए दिव्य भोगों की कामना करनेवाला-सबको देनेवाला परमात्मा या दिव्य रश्मियों को मिलानेवाला या प्राप्त करनेवाला सूर्य (यज्ञाय प्र-नीयते) समागम के लिए हृदय में धारा जाता है या यथासमय सेवन किया जाता है (रथः-न) जैसे रमणीय आश्रय करने योग्य गुरु (योः-अभीवृतः) जो मिश्रण चाहता है, वह शिष्यों के द्वारा आवृत होता है, ऐसे (घृणिवान्) दीप्तिमान् परमात्मा (त्मना चेतति) स्वरूप से सेवन करते हुए को चेताता है ॥३॥
Connotation: - परमात्मा मनुष्य के लिए दिव्य भोगों की कामना करता है, वह हृदय में साक्षात् होता है, अपने तेजस्वी स्वरूप से चेताता भी है, ऐसे ही सूर्य अपनी किरणों से संगत करता है और प्रकाश प्रदान करके चेताता है ॥३॥