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उ॒शन्त॑स्त्वा॒ नि धी॑मह्यु॒शन्त॒: समि॑धीमहि । उ॒शन्नु॑श॒त आ व॑ह पि॒तॄन्ह॒विषे॒ अत्त॑वे ॥

English Transliteration

uśantas tvā ni dhīmahy uśantaḥ sam idhīmahi | uśann uśata ā vaha pitṝn haviṣe attave ||

Pad Path

उ॒शन्तः॑ । त्वा॒ । नि । धी॒म॒हि॒ । उ॒शन्तः॑ । सम् । इ॒धी॒म॒हि॒ । उ॒शन् । उ॒श॒तः । आ । व॒ह॒ । पि॒तॄन् । ह॒विषे॑ । अत्त॑वे ॥ १०.१६.१२

Rigveda » Mandal:10» Sukta:16» Mantra:12 | Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:12


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (उशन्तः-त्वा निधीमहि-उशन्तः-समिधीमहि ) हे अग्ने ! जिससे कि हम सदैव निज इष्ट की इच्छा करते हुए तुझको अन्त्येष्टिपर्यन्त सब संस्कारों में स्थापित करते हैं तथा इष्ट चाहते हुए ही प्रज्वलित करते हैं, (उशन्-उशतः पितॄन् हविषे-अत्तवे-आवह) इसलिये तू भी हमारा इष्ट चाहती हुई, अपने जैसे इष्ट चाहती हुई सूर्यरश्मियों को यज्ञ में प्रयुक्त कर, जिस से तेरे अन्दर डाली हवि सूक्ष्म बन कर फैल जावे ॥१२॥
Connotation: - संस्कारों और मङ्गलकार्यों में अग्निहोम करना चाहिये ॥१२॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (उशन्तः-त्वा निधीमहि-उशन्तः-समिधीमहि) हे-अग्ने ! यतो वयमिच्छन्तस्त्वां स्थापयेम तथा-इच्छन्त एव च सन्दीपयेम, तस्मात्त्वमपि (उशन्-उशतः पितॄन् हविषे-अत्तवे-आवह) अस्मदिष्टमिच्छन्-अस्मदिष्टमिच्छतः पितॄन् प्रति हविषे-हविरत्तवेऽत्तुं ग्रहीतुम् ‘तुमर्थे तवेन् प्रत्ययः’। आवह-प्रयोजय ॥१२॥