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यं कु॑मार॒ नवं॒ रथ॑मच॒क्रं मन॒साकृ॑णोः । एके॑षं वि॒श्वत॒: प्राञ्च॒मप॑श्य॒न्नधि॑ तिष्ठसि ॥

English Transliteration

yaṁ kumāra navaṁ ratham acakram manasākṛṇoḥ | ekeṣaṁ viśvataḥ prāñcam apaśyann adhi tiṣṭhasi ||

Pad Path

यम् । कु॒मा॒र॒ । नव॑म् । रथ॑म् । अ॒च॒क्रम् । मन॑सा । अकृ॑णोः । एक॑ऽईषम् । वि॒श्वतः॑ । प्राञ्च॑म् । अप॑श्यन् । अधि॑ । ति॒ष्ठ॒सि॒ ॥ १०.१३५.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:135» Mantra:3 | Ashtak:8» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:11» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (कुमार) कुत्सित मार मृत्यु जिसके लिए कहना है, वह सदा न मरनेवाला आत्मा (यं नवं रथम्) जिस नये शरीररथ (अचक्रम्) चक्ररहित को (मनसा-अकृणोः) मन से प्राप्त करता है अर्थात् मानसिक कर्म संस्कारों से निष्पन्न करता है (एकेषम्) एक गति भोगप्रवृत्ति जिसकी है, ऐसे को (विश्वतः प्राञ्चम्) सब ओर से प्रगतिवाले मनुष्य पशु पक्षी योनियों में होनेवाले (अपश्यन्-अधि तिष्ठसि) न जानता हुआ अधिष्ठित होता है-विराजता है ॥३॥
Connotation: - आत्मा अमर है, तो भी अज्ञानवश शरीर के बन्धन में आता है, जो शरीर नया-नया धारण करना पड़ता है, जिसकी गतिभोग प्रवृत्ति ही है, उस पर यह अधिष्ठित हुआ अपने को भूला हुआ शरीर को समझ कर व्यवहार करता है, यह सामान्य जन की स्थिति है ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (कुमार) कुत्सितो मारो मृत्युर्यस्य सः-आत्मा तत्सम्बुद्धौ हे आत्मन् ! (यं नवं रथम्-अचक्रं-मनसा-अकृणोः) यं नवीनं देहरथं चक्ररहितं स्वयं गमनशीलं त्वं मनसा प्राप्नोषि “मनोऽधिकृतेनायात्यस्मिन्-शरीरे” [प्रश्नो०] (एकेषम्) एका-ईषा गतिर्यस्य तम्, भोगप्रवृत्तिकं (विश्वतः प्राञ्चम्) सर्वतः प्रगतिकं मनुष्यपशुपक्षियोनिषु गच्छन्तम् (अपश्यन्-अधि तिष्ठसि) अजानन् विराजसे ॥३॥