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क इ॒मं वो॑ नि॒ण्यमा चि॑केत व॒त्सो मा॒तॄर्ज॑नयत स्व॒धाभि॑:। ब॒ह्वी॒नां गर्भो॑ अ॒पसा॑मु॒पस्था॑न्म॒हान्क॒विर्निश्च॑रति स्व॒धावा॑न् ॥

English Transliteration

ka imaṁ vo niṇyam ā ciketa vatso mātṝr janayata svadhābhiḥ | bahvīnāṁ garbho apasām upasthān mahān kavir niś carati svadhāvān ||

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Pad Path

कः। इ॒मम्। वः॒। नि॒ण्यम्। आ। चि॒के॒त॒। व॒त्सः। मा॒तॄः। ज॒न॒य॒त॒। स्व॒ऽधाभिः॑। ब॒ह्वी॒नाम्। गर्भः॑। अ॒पसा॑म्। उ॒पऽस्था॑त्। म॒हान्। क॒विः। निः। च॒र॒ति॒। स्व॒धाऽवा॑न् ॥ १.९५.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:95» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह दिन-रात्रि के समय का समूह कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (बह्वीनाम्) अनेकों अन्तरिक्ष और भूमि तथा दिशाओं वा जलों के (उपस्थात्) समीपस्थ व्यवहार से (गर्भः) अच्छा आच्छादन करनेवाला (स्वधावान्) जिसके कि प्रशंसित अपने अङ्ग विद्यमान हैं (महान्) व्याप्ति आदि गुणों से युक्त (वत्सः) किन्तु अपनी व्याप्ति से सर्वोपरि सबको ढांपने वा (कविः) क्रम-क्रम से दृष्टिगत होनेवाला समय (निः) (चरति) निरन्तर अर्थात् एकतार चल रहा है और (स्वधाभिः) सूर्य्य वा भूमि के साथ (मातॄः) माता के तुल्य पालनेहारी रात्रियों को (जनयत) प्रकट करता है (इमम्) इस (निण्यम्) निश्चय से एक से रहनेवाले समय को (कः) कौन मनुष्य (आ, चिकेत) अच्छे प्रकार जान सके (वः) इन समय के अवयवों अर्थात् क्षण, घड़ी, प्रहर, दिन, रात, मास, वर्ष आदि के स्वरूप को भी कौन जान सके ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यों को जानना चाहिये कि जिसका सूक्ष्म से सूक्ष्म बोध है, जो समस्त अपने अवयवों को प्रकट करता, सब कामों में व्याप्त होता, जिसमें सब जगत् एक रस रहता है उस समय को कोई विद्वान् जान-सकता है, सब कोई नहीं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कालसमूहः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यो बह्वीनामपसामुपस्थात् गर्भः स्वधावान् महान् वत्सः कविः कालो निश्चरति स्वधाभिर्मातॄर्जनयतेमं निण्यं क आचिकेत व एतेषामवयवानां स्वरूपं च ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (कः) मनुष्यः (इमम्) प्रत्यक्षम् (वः) एतेषां कालावयवानाम् (निण्यम्) निश्चितं स्वरूपम् (आ) (चिकेत) विजानीयात् (वत्सः) स्वव्याप्त्या सर्वाच्छादकः (मातॄः) मातृवत्पालिका रात्रीः (जनयत) जनयति। अत्र लङ्यडभावो बुधयुधेति परस्मैपदे प्राप्ते व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (स्वधाभिः) द्यावापृथिव्यादिभिः सह (बह्वीनाम्) अनेकासां द्यावापृथिव्यादीनां दिशां वा (गर्भः) आवरकः (अपसाम्) जलानाम् (उपस्थात्) समीपस्थव्यवहारात् (महान्) व्याप्त्यादिमहागुणविशिष्टः (कविः) क्रान्तदर्शनः (निः) नितराम् (चरति) प्राप्तोऽस्ति (स्वधावान्) स्वधाः स्वकीया अवयवाः प्रशस्ता विद्यन्तेऽस्मिन् सः ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्यस्य परमसूक्ष्मो बोधोऽस्ति यः सर्वान् कालविभागान् प्रकटयति कर्माणि व्याप्नोति सर्वत्रैकरसः कालोऽस्ति तं कश्चिन्निपुणो विद्वान् ज्ञातुं शक्नोति नहि सर्व इति वेद्यम् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी हे जाणले पाहिजे, की ज्याचा सूक्ष्माहून सूक्ष्म बोध असतो जो आपल्या संपूर्ण अवयवांना प्रकट करतो, सर्व कामांत व्याप्त असतो, ज्याच्यात सर्व जग एकरस असते, त्या काळाला एखादा विद्वान जाणू शकतो, सर्वजण नाही. ॥ ४ ॥