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दे॒वानां॑ भ॒द्रा सु॑म॒तिर्ऋ॑जूय॒तां दे॒वानां॑ रा॒तिर॒भि नो॒ नि व॑र्तताम्। दे॒वानां॑ स॒ख्यमुप॑ सेदिमा व॒यं दे॒वा न॒ आयुः॒ प्र ति॑रन्तु जी॒वसे॑ ॥

English Transliteration

devānām bhadrā sumatir ṛjūyatāṁ devānāṁ rātir abhi no ni vartatām | devānāṁ sakhyam upa sedimā vayaṁ devā na āyuḥ pra tirantu jīvase ||

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Pad Path

दे॒वाना॑म्। भ॒द्रा। सु॒ऽम॒तिः। ऋ॒जु॒ऽय॒ताम्। दे॒वाना॑म्। रा॒तिः। अ॒भि। नः॒। नि। व॒र्त॒ता॒म्। दे॒वाना॑म्। स॒ख्यम्। उप॑। से॒दि॒म॒। व॒यम्। दे॒वाः। नः॒। आयुः॑। प्र। ति॒र॒न्तु॒। जी॒वसे॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:89» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

सब मनुष्यों को विद्वानों से क्या-क्या पाना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - (वयम्) हम लोग जो (ऋजूयताम्) अपने को कोमलता चाहते हुए (देवानाम्) विद्वान् लोगों की (भद्रा) सुख करनेवाली (सुमतिः) श्रेष्ठ बुद्धि वा जो अपने को निरभिमानता चाहनेवाले (देवानाम्) दिव्य गुणों की (रातिः) विद्या का दान और जो अपने को सरलता चाहते हुए (देवानाम्) दया से विद्या की वृद्धि करना चाहते हैं, उन विद्वानों का जो सुख देनेवाला (सख्यम्) मित्रपन है, यह सब (नः) हमारे लिये (अभि+नि+वर्त्तताम्) सम्मुख नित्य रहे। और उक्त समस्त व्यवहारों को (उप+सेदिम) प्राप्त हों। और उक्त जो (देवाः) विद्वान् लोग हैं, वे (नः) हम लोगों के (जीवसे) जीवन के लिये (आयुः) उमर को (प्र+तिरन्तु) अच्छी शिक्षा से बढ़ावें ॥ २ ॥
Connotation: - उत्तम विद्वानों के सङ्ग और ब्रह्मचर्य्य आदि नियमों के विना किसी का शरीर और आत्मा का बल बढ़ नहीं सकता, इससे सबको चाहिये कि इन विद्वानों का सङ्ग नित्य करें और जितेन्द्रिय रहें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

सर्वैर्मनुष्यैस्तेभ्यः किं प्रापणीयमित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

वयं या ऋजूयतां देवानां भद्रा सुमतिर्या ऋजयूतां देवानां रातिः यदृजूयतां देवानां भद्रं सख्यं चाऽस्ति तदेतत्सर्वं नोऽस्मभ्यमभिनिवर्त्तताम्। तच्चोपसेदिमोपप्राप्नुयाम य उक्ता देवास्ते नोऽस्माकं जीवस आयुः प्रतिरन्तु ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (देवानाम्) विदुषाम् (भद्रा) कल्याणकारिणी (सुमतिः) शोभना बुद्धिः (ऋजूयताम्) आत्मन ऋजुमिच्छताम् (देवानाम्) दिव्यगुणानाम् (रातिः) विद्यादानम्। अत्र मन्त्रे वृषेषपचमनविदभूवीरा उदात्तः। (अष्टा०३.३.१६) अनेन भावे क्तिन् स चोदात्तः। (अभि) आभिमुख्ये (नः) अस्मभ्यम् (नि) नित्यम् (वर्त्तताम्) (देवानाम्) दयया विद्यावृद्धिं चिकीर्षताम् (सख्यम्) मित्रभावम् (उप) (सेदिम) प्राप्नुयाम। अत्रान्येषामपि दृश्यत इति दीर्घः। (वयम्) (देवाः) विद्वांसः (नः) अस्माकम् (आयुः) जीवनम् (प्र) (तिरन्तु) सुशिक्षया वर्द्धयन्तु (जीवसे) जीवितुम्। इमं मन्त्रं यास्कमुनिरेवमाचष्टे। देवानां वयं सुमतौ कल्याण्यां मतौ। ऋजुगामिनाम्। ऋतुगामिनामिति वा। देवानां दानमभि नो निवर्तताम्। देवानां सख्यमुपसीदेम वयम्। देवा न आयुः प्रवर्धयन्तु चिरं जीवनाय। (निरु०१२.३९) ॥ २ ॥
Connotation: - नह्याप्तानां विदुषां सङ्गेन ब्रह्मचर्यादिनियमैश्च विना कस्यापि शरीरात्मबलं वर्द्धितुं शक्यं तस्मात्सर्वैरेतेषां सङ्गो नित्यं विधेयः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - उत्तम विद्वानांची संगत व ब्रह्मचर्य इत्यादी नियम याशिवाय कुणाचेही शरीर व आत्म्याचे बल वाढू शकत नाही. त्यामुळे सर्वांनी विद्वानांची संगती नित्य करावी व जितेंद्रिय राहावे. ॥ २ ॥