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निरि॑न्द्र॒ भूम्या॒ अधि॑ वृ॒त्रं ज॑घन्थ॒ निर्दि॒वः। सृ॒जा म॒रुत्व॑ती॒रव॑ जी॒वध॑न्या इ॒मा अ॒पोऽर्च॒न्ननु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

English Transliteration

nir indra bhūmyā adhi vṛtraṁ jaghantha nir divaḥ | sṛjā marutvatīr ava jīvadhanyā imā apo rcann anu svarājyam ||

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Pad Path

निः। इ॒न्द्र॒। भूम्याः॑। अधि॑। वृ॒त्रम्। ज॒घ॒न्थ॒। निः। दि॒वः। सृ॒ज। म॒रुत्व॑तीः। अव॑। जी॒वऽध॑न्याः। इ॒माः। अ॒पः। अर्च॑न्। अनु॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:80» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:29» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य के देनेहारे ! तू जैसे सूर्य्य (वृत्रम्) मेघ का ताड़न कर (भूम्याः) पृथिवी के (अधि) ऊपर (इमाः) ये (जीवधन्याः) जीवों में धनादि की सिद्धि में हितकारक (मरुत्वतीः) मनुष्यादि प्रजा के व्यवहारों को सिद्ध करनेवाले (अपः) जलों को (निर्जघन्थ) नित्य पृथिवी को पहुँचाता है और (दिवः) प्रकाशों को प्रकट करता है, वैसे अधर्मियों को दण्ड दे धर्माचार का प्रकाश कर (स्वराज्यम्) अपने राज्य का (अन्वर्चन्) यथायोग्य सत्कार करता हुआ प्रजाशासन किया कर और नाना प्रकार के सुखों को (निरवसृज) निरन्तर सिद्ध कर ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राज्य करने की इच्छा करे, वह विद्या, धर्म और विशेष नीति का प्रचार करके आप धर्म्मात्मा होकर, सब प्रजाओं में पिता के समान वर्त्ते ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वं यथा सूर्य्यो वृत्रं हत्वा भूम्याऽधीमा जीवधन्या मरुत्त्वतीरपो निर्जघन्थ दिवोऽवसृजति तथा दुष्टाचारान् हत्वा धर्माचारं प्रचार्य स्वराज्यमन्वर्चन् राज्यं शाधि विविधं वस्तु सृज ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (निः) नितराम् (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (भूम्याः) पृथिव्याः। भूमिरिति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (अधि) उपरि (वृत्रम्) मेघम् (जघन्थ) हन्ति (निः) नित्यम् (दिवः) किरणान् (सृज) (मरुत्वतीः) मनुष्यादिप्रजासम्बन्धिनीः (अव) (जीवधन्याः) या जीवेषु धन्या धनाय हिताः (इमाः) प्रत्यक्षाः (अपः) जलानि (अर्चन्) सत्कुर्वन् (अनु) आनुकूल्ये (स्वराज्यम्) ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राज्यं कर्त्तुमिच्छेत् स विद्याधर्मविनयान् प्रचार्य्य स्वयं धार्मिको भूत्वा प्रजासु पितृवद्वर्तेत ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याला राज्य करण्याची इच्छा असेल त्याने विद्या, धर्म व विशेषनीतीचा प्रचार करून स्वतः धार्मिक बनून सर्व प्रजेशी पित्याप्रमाणे वागावे. ॥ ४ ॥