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आ च॒ वहा॑सि॒ ताँ इ॒ह दे॒वाँ उप॒ प्रश॑स्तये। ह॒व्या सु॑श्चन्द्र वी॒तये॑ ॥

English Transliteration

ā ca vahāsi tām̐ iha devām̐ upa praśastaye | havyā suścandra vītaye ||

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Pad Path

आ। च॒। वहा॑सि। तान्। इ॒ह। दे॒वान्। उप॑। प्रऽश॑स्तये। ह॒व्या। सु॒ऽच॒न्द्र॒। वी॒तये॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:74» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (सुश्चन्द्र) अच्छे आनन्द देनेवाले विद्वान् ! आप (इह) इस संसार में (प्रशस्तये) प्रशंसा (च) और (वीतये) सुखों की प्राप्ति के लिये जिन (हव्या) ग्रहण के योग्य (देवान्) दिव्य गुणों वा विद्वानों को (उपावहासि) समीप में सब प्रकार प्राप्त हों (तान्) उन आप को हम लोग प्राप्त होवें ॥ ५ ॥
Connotation: - जब तक मनुष्य परमेश्वर के जानने के लिये धर्मात्मा विद्वान् पुरुषों से शिक्षा और अग्नि आदि पदार्थों से उपकार लेने में ठीक-ठीक पुरुषार्थ नहीं करते, तब तक पूर्ण विद्या को प्राप्त कभी नहीं हो सकते ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे सुश्चन्द्राप्तविद्वँस्त्वमिह प्रशस्तये वीतये च यान् हव्या देवानुपावहासि सर्वतः प्राप्नुयास्तान् वयं प्राप्नुयाम ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (च) समुच्चये (वहासि) प्राप्नुयाः (तान्) वक्ष्यमाणान् (इह) अस्मिन् संसारे (देवान्) विदुषो दिव्यगुणान् वा (उप) सामीप्ये (प्रशस्तये) प्रशंसनाय (हव्या) ग्रहीतुं योग्यान्। अत्राकारादेशः। (सुश्चन्द्र) शोभनं चन्द्रमाह्लादनं हिरण्यं वा यस्मात् तत्सम्बुद्धौ। चन्द्रमिति हिरण्यनामसु पठितम्। (निघं०१.२) ह्रस्वाच्चन्द्रोत्तरपदे मन्त्रे। (अष्टा०६.१.१५१) इति सुडागमः। (वीतये) सर्वसुखव्याप्तये ॥ ६ ॥
Connotation: - यावन्मनुष्याः परमेश्वरस्याप्तविदुषोऽग्न्यादेश्च सङ्गाय विज्ञानाय प्रशंसितं पुरुषार्थं न कुर्वन्ति, तावत् किल पूर्णा विद्या प्राप्तुं न शक्नुवन्ति ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जोपर्यंत माणसे परमेश्वराला जाणण्यासाठी धर्मात्मा विद्वान पुरुषांकडून शिक्षण घेत नाहीत व अग्नी इत्यादी पदार्थांकडून उपकार घेण्यासाठी योग्य पुरुषार्थ करीत नाहीत तोपर्यंत पूर्ण विद्या कधीही प्राप्त होऊ शकत नाही. ॥ ६ ॥