आ च॒ वहा॑सि॒ ताँ इ॒ह दे॒वाँ उप॒ प्रश॑स्तये। ह॒व्या सु॑श्चन्द्र वी॒तये॑ ॥
ā ca vahāsi tām̐ iha devām̐ upa praśastaye | havyā suścandra vītaye ||
आ। च॒। वहा॑सि। तान्। इ॒ह। दे॒वान्। उप॑। प्रऽश॑स्तये। ह॒व्या। सु॒ऽच॒न्द्र॒। वी॒तये॑ ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
हे सुश्चन्द्राप्तविद्वँस्त्वमिह प्रशस्तये वीतये च यान् हव्या देवानुपावहासि सर्वतः प्राप्नुयास्तान् वयं प्राप्नुयाम ॥ ६ ॥