उ॒त ब्रु॑वन्तु ज॒न्तव॒ उद॒ग्निर्वृ॑त्र॒हाज॑नि। ध॒नं॒ज॒यो रणे॑रणे ॥
uta bruvantu jantava ud agnir vṛtrahājani | dhanaṁjayo raṇe-raṇe ||
उ॒त। ब्रु॒व॒न्तु॒। ज॒न्तवः॑। उत्। अ॒ग्निः। वृ॒त्र॒ऽहा। अ॒ज॒नि॒। ध॒न॒म्ऽज॒यः। रणे॑ऽरणे ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
यो रणेरणे धनञ्जयो वृत्रहेव दाशुषे गयमुदजनि। उतापि यं विद्वांस उपदिशन्ति, तं जन्तवोऽन्योन्यमुपब्रुवन्तु ॥ ३ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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