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म॒हे यत्पि॒त्र ईं॒ रसं॑ दि॒वे करव॑ त्सरत्पृश॒न्य॑श्चिकि॒त्वान्। सृ॒जदस्ता॑ धृष॒ता दि॒द्युम॑स्मै॒ स्वायां॑ दे॒वो दु॑हि॒तरि॒ त्विषिं॑ धात् ॥

English Transliteration

mahe yat pitra īṁ rasaṁ dive kar ava tsarat pṛśanyaś cikitvān | sṛjad astā dhṛṣatā didyum asmai svāyāṁ devo duhitari tviṣiṁ dhāt ||

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Pad Path

म॒हे। यत्। पि॒त्रे। ई॒म्। रस॑म्। दि॒वे। कः। अव॑। त्स॒र॒त्। पृ॒श॒न्यः॑। चि॒कि॒त्वान्। सृ॒जत्। अस्ता॑। धृष॒ता। दि॒द्युम्। अ॒स्मै॒। स्वाया॑म्। दे॒वः। दु॒हि॒तरि॑। त्विषि॑म्। धा॒त् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:71» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सूर्य के समान अध्यापक के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोगों को जैसे (यत्) जो (कः) सुखदाता (पृशन्यः) स्पर्श करने (अस्ता) फेंकने (चिकित्वान्) जानने (देवः) विद्या प्रकाश के देनेवाला सूर्य्य (महे) बड़े (पित्रे) प्रकाश के देने से पालन करनेवाले (दिवे) प्रकाश के लिये (ईम्) प्राप्त करने योग्य (रसम्) ओषधि के फल को (अवसृजत्) रचता (ईम्) (त्सरत्) अन्धकार को दूर करता (स्वायाम्) अपनी (दुहितरि) कन्या के समान उषा में (त्विषिम्) प्रकाश वा तेज को (धात्) धारण करता, उसके अनन्तर (दिद्युम्) दीप्ति की (धृषता) दृढ़ता से सुख देता है, वैसे किया करो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब माता-पिता आदि मनुष्यों को अपने-अपने सन्तानों में विद्यास्थापन करना चाहिये। जैसे प्रकाशमान सूर्य सबको प्रकाश करके आनन्दित करता है, वैसे ही विद्यायुक्त पुत्र वा पुत्री सब सुखों को देते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सूर्यवदध्यापकगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे मनुष्याः ! यूयं तथा यद्यः कः पृशन्य अस्ता चिकित्वान् देवः सूर्यो महे पित्रे दिव ईम्रसमवसृजदीमन्धकारं च त्सरत्स्वायां दुहितरि त्विषिं धादथ दिद्युं धृषता सुखं दीयते तथा सर्वस्मै सुखं कुरुत ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (महे) विद्यया परिमाणेन महत् (यत्) यः (पित्रे) विद्याप्रकाशयोर्दानेन पालयित्रे (ईम्) प्राप्तव्यम् (रसम्) विद्यौषधिफलम् (दिवे) प्रकाशाय (कः) सुखदः (अव) विनिग्रहे (त्सरत्) विरुद्धं गच्छति (पृशन्यः) पर्शिता (चिकित्वान्) ज्ञानवान् ज्ञानहेतुर्वा (सृजत्) सृजति (अस्ता) प्रक्षेप्ता (धृषता) प्रागल्भ्येन (दिद्युम्) द्योतमानां विद्यां दीप्तिं वा (अस्मै) प्रयोजनाय (स्वायाम्) स्वकीयाम् (देवः) विद्याप्रकाशदाता (दुहितरि) कन्येव वर्त्तमानायामुषसि (त्विषिम्) विद्याप्रकाशं तेजो वा (धात्) दधाति ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वैर्मातापित्रादिभिर्मनुष्यैः स्वस्य स्वस्य सन्तानेषु विद्या स्थापनीया। यथा प्रकाशमयः सन् सूर्यः सर्वं प्रकाश्यानन्दयति तथैव विद्यायुक्ताः पुत्राः कन्याश्च सर्वाणि सुखानि ददति ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माता-पिता यांनी आपल्या संतानांना विद्या द्यावी, जसे प्रकाशमान सूर्य सर्वांना प्रकाश देऊन आनंदित करतो, तसेच विद्यायुक्त पुत्र-पुत्री सर्वांना सुख देतात. ॥ ५ ॥