म॒हे यत्पि॒त्र ईं॒ रसं॑ दि॒वे करव॑ त्सरत्पृश॒न्य॑श्चिकि॒त्वान्। सृ॒जदस्ता॑ धृष॒ता दि॒द्युम॑स्मै॒ स्वायां॑ दे॒वो दु॑हि॒तरि॒ त्विषिं॑ धात् ॥
mahe yat pitra īṁ rasaṁ dive kar ava tsarat pṛśanyaś cikitvān | sṛjad astā dhṛṣatā didyum asmai svāyāṁ devo duhitari tviṣiṁ dhāt ||
म॒हे। यत्। पि॒त्रे। ई॒म्। रस॑म्। दि॒वे। कः। अव॑। त्स॒र॒त्। पृ॒श॒न्यः॑। चि॒कि॒त्वान्। सृ॒जत्। अस्ता॑। धृष॒ता। दि॒द्युम्। अ॒स्मै॒। स्वाया॑म्। दे॒वः। दु॒हि॒तरि॑। त्विषि॑म्। धा॒त् ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर सूर्य के समान अध्यापक के गुणों का उपदेश किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः सूर्यवदध्यापकगुणा उपदिश्यन्ते ॥
हे मनुष्याः ! यूयं तथा यद्यः कः पृशन्य अस्ता चिकित्वान् देवः सूर्यो महे पित्रे दिव ईम्रसमवसृजदीमन्धकारं च त्सरत्स्वायां दुहितरि त्विषिं धादथ दिद्युं धृषता सुखं दीयते तथा सर्वस्मै सुखं कुरुत ॥ ५ ॥