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स हि क्ष॒पावाँ॑ अ॒ग्नी र॑यी॒णां दाश॒द्यो अ॑स्मा॒ अरं॑ सू॒क्तैः ॥

English Transliteration

sa hi kṣapāvām̐ agnī rayīṇāṁ dāśad yo asmā araṁ sūktaiḥ ||

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Pad Path

सः। हि। क्ष॒पाऽवा॑न्। अ॒ग्निः। र॒यी॒णाम्। दाश॑त्। यः। अ॒स्मै॒। अर॑म्। सु॒ऽउ॒क्तैः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:70» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह मनुष्य कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (चिकित्वः) ज्ञानवान् जगदीश्वर वा (विद्वान्) जाननेवाले ! (यः) जो (क्षपावान्) जिसमें उत्तम बहुत रात्रि हैं (अग्निः) सब सुखों की देनेवाली बिजुली के समान (अस्मै) इन (रयीणाम्) विद्यारत्न राज्य आदि पदार्थों की (अरम्) पूर्णप्राप्ति के लिये (एता) इन (अरम्) पूर्ण (सूक्तैः) उत्तम वचनों से (भूम) बहुत (देवानाम्) दिव्यगुण वा विद्वानों के (जन्म) जन्म (मर्त्तान्) मनुष्य (च) मनुष्य से भिन्नों को (दाशत्) देते हो (सः) सो आप (हि) निश्चय करके इनकी (नि पाहि) निरन्तर रक्षा कीजिये ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेष और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को जो परमेश्वर वा विद्वान् वेद वा अन्तर्यामि द्वारा तथा उपदेशों से सब मनुष्यों के लिये सब विद्याओं को देता है, उसकी उपासना तथा सत्सङ्ग करना चाहिये ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे चिकित्वो विद्वान् ! यस्त्वं क्षपावानग्निरिवास्मै रयीणामरं प्रापणायैतान् परं सूक्तैर्भूम देवानां जन्म मर्त्तांश्चादन्यश्च दाशत् स त्वं हि खल्वेतानि निपाहि ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (सः) परमेश्वरो जीवो वा (हि) खलु (क्षपावान्) क्षपाः प्रशस्ता रात्रयो विद्यन्ते यस्मिन् यस्य वा सः (अग्निः) यथा सर्वसुखदात्री विद्युत् (रयीणाम्) विद्यारत्नराज्यादिपदार्थानाम् (दाशत्) दाश्यात् (यः) उक्तार्थः (अस्मै) प्रापणाय (अरम्) अलम् (सूक्तैः) शोभनान्युक्तानि वचनानि येषूपदेशनेषु तेषु (एता) एतानि (चिकित्वः) ज्ञानवन् (भूम) भूमानि बहूनि (नि) नितराम् (पाहि) रक्ष (देवानाम्) दिव्यानां गुणानां विदुषां वा (जन्म) प्रादुर्भावम् (मर्त्तान्) मनुष्यान् (च) समुच्चये (विद्वान्) यो वेत्ति सः ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यः परमेश्वरो विद्वान् वा वेदान्तर्यामित्वद्वारोपदेशैर्वा सर्वा विद्या सर्वमनुष्येभ्यः प्रयच्छति, स एवोपास्यः सङ्गमनीयश्चेति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या जगदीश्वराने सनातन कारणापासून सर्व कार्य अर्थात स्थूलरूप वस्तूंना उत्पन्न करून स्पर्श इत्यादी गुण प्रकाशित केलेले आहेत. ज्या सृष्टीत उत्पन्न झालेल्या पदार्थाचे पिता व पुत्राप्रमाणे सर्व जीव उत्तराधिकारी आहेत. जो सर्व प्राण्यांना सुख देतो त्याची आत्मा, मन, वाणी, शरीर व धनाने सेवा करा. ॥ ५ ॥