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दि॒वश्चि॑त्ते बृह॒तो जा॑तवेदो॒ वैश्वा॑नर॒ प्र रि॑रिचे महि॒त्वम्। राजा॑ कृष्टी॒नाम॑सि॒ मानु॑षीणां यु॒धा दे॒वेभ्यो॒ वरि॑वश्चकर्थ ॥

English Transliteration

divaś cit te bṛhato jātavedo vaiśvānara pra ririce mahitvam | rājā kṛṣṭīnām asi mānuṣīṇāṁ yudhā devebhyo varivaś cakartha ||

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Pad Path

दि॒वः। चि॒त्। ते॒। बृ॒ह॒तः। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। वैश्वा॑नर। प्र। रि॒रि॒चे॒। म॒हि॒ऽत्वम्। राजा॑। कृ॒ष्टी॒नाम्। अ॒सि॒। मानु॑षीणाम्। यु॒धा। दे॒वेभ्यः॑। वरि॑वः। च॒क॒र्थ॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:59» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (जातवेदः) जिससे वेद उत्पन्न हुए वेदों को जानने वा उन को प्राप्त कराने तथा उत्पन्न हुए पदार्थों में विद्यमान (वैश्वानर) सबको प्राप्त होनेवाले (प्रजापते) जगदीश्वर ! जिस (ते) आप का (महित्वम्) महागुणयुक्त प्रभाव (बृहतः) बड़े (दिवः) सूर्य्यादि प्रकाश से (चित्) भी (प्ररिरिचे) अधिक है, जो आप (कृष्टीनाम्) मनुष्यादि (मानुषीणाम्) मनुष्यसम्बन्धी प्रजाओं के (राजा) प्रकाशमानाधीश (असि) हो और जो आप (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (युधा) संग्राम से (वरिवः) सेवा को (चकर्थ) प्राप्त कराते हो, सो आप ही हम लोगों के न्यायाधीश हूजिये ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। सभा में रहनेवाले मनुष्यों को अनन्त सामर्थ्यवान् होने से, परमेश्वर की सबके अधिष्ठाता होने से उपासना वा महाशुभगुण युक्त होने से, सभा आदि के अध्यक्ष के अधीश का सेवन और युद्ध से दुष्टों को जीत के प्रजा का पालन करके विद्वानों की सेवा तथा सत्सङ्ग को सदा करना चाहिये ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे जातवेदो वैश्वानर जगदीश्वर ! यस्य ते तव महित्वं बृहतो दिवश्चित् सूर्यादेर्महतः प्रकाशादपि प्ररिरिचे प्रकृष्टतयाऽधिकमस्ति यस्त्वं कृष्टीनां मानुषीणां प्रजानां राजासि यस्त्वं देवेभ्यो युधा वरिवश्चकर्थ स भवानस्माकं न्यायाधीशोऽस्त्विति ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (दिवः) विज्ञानप्रकाशात् (चित्) अपि (ते) तव (बृहतः) महतः (जातवेदः) जाता वेदा यस्माज्जगदीश्वराज्जातान् वेदान् वेत्ति जातान् सर्वान् पदार्थान् विदन्ति जातेषु पदार्थेषु विद्यते वा तत्सम्बुद्धौ (वैश्वानर) सर्वनेतः (प्र) प्रकृष्टार्थे (रिरिचे) रिणक्ति। (महित्वम्) महागुणस्वभावम् (राजा) प्रकाशमानोऽधीशः (कृष्टीनाम्) मनुष्याणाम् (असि) (मानुषीणाम्) मनुष्यसम्बन्धिनीनां प्रजानाम् (युधा) युध्यन्ते यस्मिन् संग्रामे तेन। अत्र कृतो बहुलम् इत्यधिकरणे क्विप्। (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (वरिवः) परिचरणम् (चकर्थ) करोषि ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। सभासद्भिर्मनुष्यैः परमेश्वरोऽनन्तसामर्थ्यवत्त्वात् सर्वाधीशत्वेनोपासनीयः। सभाद्यध्यक्षो महाशुभगुणान्वितत्वात् सर्वाधिपतित्वेन समाश्रित्य युद्धेन दुष्टान् विजित्य धार्मिकान् प्रसाद्य प्रजापालनं विधाय विदुषां सेवासङ्गौ सदैव कर्त्तव्यौ ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. परमेश्वर हा अनंत सामर्थ्यवान असल्यामुळे व सर्वांचा अधिष्ठाता असल्यामुळे उपासनीय आहे हे सभासदांनी जाणावे. सभाध्यक्ष हा महाशुभगुणयुक्त व सर्वाधिपती असून त्याच्या आश्रयाने युद्धात दुष्टांना जिंकून, धार्मिकांचे पालन करून विद्वानांची सेवा व सत्संग सदैव केला पाहिजे. ॥ ५ ॥