ए॒तेना॑ग्ने॒ ब्रह्म॑णा वावृधस्व॒ शक्ती॑ वा॒ यत्ते॑ चकृ॒मा वि॒दा वा॑। उ॒त प्र णे॑ष्य॒भि वस्यो॑ अ॒स्मान्त्सं नः॑ सृज सुम॒त्या वाज॑वत्या ॥
etenāgne brahmaṇā vāvṛdhasva śaktī vā yat te cakṛmā vidā vā | uta pra ṇeṣy abhi vasyo asmān saṁ naḥ sṛja sumatyā vājavatyā ||
ए॒तेन॑। अ॒ग्ने॒। ब्रह्म॑णा। वा॒वृ॒ध॒स्व॒। शक्ती॑। वा॒। यत्। ते॒। च॒कृ॒म। वि॒दा। वा॒। उ॒त। प्र। ने॒षि॒। अ॒भि। वस्यः॑। अ॒स्मान्। सम्। नः॒। सृ॒ज॒। सु॒ऽम॒त्या। वाज॑ऽवत्या ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसा हो, इसका प्रकाश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृशो भवेदित्याह ॥
हे अग्ने विद्वद्वर्य ! त्वं ब्रह्मणा वाजवत्या सुमत्या शक्ती शक्त्या नो वस्योऽभिसृज त्वमुत विदा वावृधस्व ते तव यत् प्रियाचरण तद्वयं चकृम, त्वं चास्मान् प्रणेषि सद्बोधं प्रापयसि ॥ १८ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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