म॒नु॒ष्वद॑ग्ने अङ्गिर॒स्वद॑ङ्गिरो ययाति॒वत्सद॑ने पूर्व॒वच्छु॑चे। अच्छ॑ या॒ह्या व॑हा॒ दैव्यं॒ जन॒मा सा॑दय ब॒र्हिषि॒ यक्षि॑ च प्रि॒यम् ॥
manuṣvad agne aṅgirasvad aṅgiro yayātivat sadane pūrvavac chuce | accha yāhy ā vahā daivyaṁ janam ā sādaya barhiṣi yakṣi ca priyam ||
म॒नु॒ष्वत्। अ॒ग्ने॒। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। अ॒ङ्गि॒रः॒। य॒या॒ति॒ऽवत्। सद॑ने। पू॒र्व॒ऽवत्। शु॒चे॒। अच्छ॑। या॒हि॒। आ। व॒ह॒। दैव्य॑म्। जन॑म्। आ। सा॒द॒य॒। ब॒र्हिषि॑। यक्षि॑। च॒। प्रि॒यम् ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स एवोपदिश्यते ॥
हे शुचेऽङ्गिरोऽग्ने सभापते ! त्वं विनयायाभ्यां मनुष्वदङ्गिरस्वद्ययातिवत्पूर्ववत् प्रियं दैव्यं जनमच्छायाहि तं च विद्याधर्मं प्रति वह प्रापय बर्हिष्यासादय सदने यक्षि याजय च ॥ १७ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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