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त्वं नो॑ अग्ने॒ तव॑ देव पा॒युभि॑र्म॒घोनो॑ रक्ष त॒न्व॑श्च वन्द्य। त्रा॒ता तो॒कस्य॒ तन॑ये॒ गवा॑म॒स्यनि॑मेषं॒ रक्ष॑माण॒स्तव॑ व्र॒ते ॥

English Transliteration

tvaṁ no agne tava deva pāyubhir maghono rakṣa tanvaś ca vandya | trātā tokasya tanaye gavām asy animeṣaṁ rakṣamāṇas tava vrate ||

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Pad Path

त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। तव॑। दे॒व॒। पा॒युऽभिः॑। म॒घोनः॑। र॒क्ष॒। त॒न्वः॑। च॒। व॒न्द्य॒। त्रा॒ता। तो॒कस्य॑। तन॑ये। गवा॑म्। अ॒सि॒। अनि॑ऽमेषम्। रक्ष॑माणः। तव॑। व्र॒ते ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:31» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:34» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:7» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अगले मन्त्र में भी सभापति का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (देव) सब सुख देने और (वन्द्य) स्तुति करने योग्य (अग्ने) तथा यथोचित सबकी रक्षा करनेवाले सभेश्वर ! (तव) सर्वाधिपति आपके (व्रते) सत्य पालन आदि नियम में प्रवृत्त और (मघोनः) प्रशंसनीय धनयुक्त (नः) हम लोगों को और हमारे (तन्वः) शरीरों को (पायुभिः) उत्तम रक्षादि व्यवहारों से (अनिमेषम्) प्रतिक्षण (रक्ष) पालिये (रक्षमाणः) रक्षा करते हुए आप जो कि आपके उक्त नियम में वर्त्तमान (तोकस्य) छोटे-छोटे बालक वा (गवाम्) प्राणियों की मन आदि इन्द्रियाँ और गाय बैल आदि पशु हैं उनके तथा (अस्य) सब चराचर जगत् के प्रतिक्षण (त्राता) रक्षक अर्थात् अत्यन्त आनन्द देनेवाले हूजिये ॥ १२ ॥
Connotation: - सभापति राजा ईश्वर के जो संसार की धारणा और पालना आदि गुण हैं, उनके तुल्य उत्तम गुणों से अपने राज्य के नियम में प्रवृत्त जनों की निरन्तर रक्षा करे ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स एवोपदिश्यते ॥

Anvay:

हे देव वन्द्याग्ने सभेश्वर ! तव व्रते वर्त्तमानान् मघोनो नोऽस्मान् अस्माकं वा तन्वस्तनूँश्च पायुभिस्त्वमनिमेषं रक्ष तथा रक्षमाणस्त्वं तव व्रते वर्त्तमानस्य तोकस्य गवामस्य संसारस्य चानिमेषं च तनये त्राता भव ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) सभेशः (नः) अस्माकमस्मान् वा (अग्ने) सर्वाभिरक्षक (तव) सर्वाधिपतेः (देव) सर्वसुखदातः (पायुभिः) रक्षादिव्यवहारैः (मघोनः) मघं प्रशस्तं धनं विद्यते येषां तान्। अत्र प्रशंसार्थे मतुप्। मघमिति धननामधेयम् । (निघं०२.१०) (रक्ष) पालय (तन्वः) शरीराणि। अत्र सुपां सुलुग्० इति शसः स्थाने जस्। (वन्द्य) स्तोतुमर्ह (त्राता) रक्षक (तोकस्य) अपत्यस्य। तोकमित्यपत्यनामसु पठितम् । (निघं०२.२) (तनये) विद्याशरीरबलवर्धनाय प्रवर्त्तमाने पुत्रे। तनयमित्यपत्यनामसु पठितम् । (निघं०२.२) (गवाम्) मनआदीन्द्रियाणां चतुष्पदां वा (अस्य) प्रत्यक्षाप्रत्यक्षस्य संसारस्य (अनिमेषम्) प्रतिक्षणम् (रक्षमाणः) रक्षन् सन्। अत्र व्यत्ययेन शानच् (तव) प्रजेश्वरस्य (व्रते) सत्यपालनादिनियमे ॥ १२ ॥
Connotation: - सभापती राजा परमेश्वरस्य जगद्धारणपालनादिगुणैरिवोत्तमगुणै राज्यनियमप्रवृत्ताञ्जनान् सततं रक्षेत् ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जगाची धारणा व पालन इत्यादी ईश्वराचे जे गुण आहेत त्याप्रमाणे उत्तम गुणांनी सभापती राजाने आपल्या राज्याचे नियम पालन करणाऱ्यांचे निरंतर रक्षण करावे. ॥ १२ ॥