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शुनः॒शेपो॒ ह्यह्व॑द्गृभी॒तस्त्रि॒ष्वा॑दि॒त्यं द्रु॑प॒देषु॑ ब॒द्धः। अवै॑नं॒ राजा॒ वरु॑णः ससृज्याद्वि॒द्वाँ अद॑ब्धो॒ वि मु॑मोक्तु॒ पाशा॑न्॥

English Transliteration

śunaḥśepo hy ahvad gṛbhītas triṣv ādityaṁ drupadeṣu baddhaḥ | avainaṁ rājā varuṇaḥ sasṛjyād vidvām̐ adabdho vi mumoktu pāśān ||

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Pad Path

शुनः॒शेपः॑। हि। अह्व॑त्। गृ॒भी॒तः। त्रि॒षु। आ॒दि॒त्यम्। द्रु॒ऽप॒देषु॑। ब॒द्धः। अव॑। ए॒न॒म्। राजा॑। वरु॑णः। स॒सृ॒ज्या॒त्। वि॒द्वान्। अद॑ब्धः। वि। मु॒मो॒क्तु॒। पाशा॑न्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:24» Mantra:13 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह वरुण कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - जैसे (शुनःशेपः) उक्त गुणवाला विद्वान् (त्रिषु) कर्म उपासना और ज्ञान में (आदित्यम्) अविनाशी परमेश्वर का (अह्वत्) आह्वान करता है, वह हम लोगों ने (गृभीतः) स्वीकार किया हुआ उक्त तीनों कर्म उपासना और ज्ञान को प्रकाशित कराता है और जो (द्रुपदेषु) क्रिया कुशलता की सिद्धि के लिये विमान आदि यानों के खम्भों में (बद्धः) नियम से युक्त किया हुआ वायु ग्रहण किया है, वैसे वह लोगों को भी ग्रहण करना चाहिये, जैसे-जैसे गुणवाले पदार्थ को (अदब्धः) अति प्रशंसनीय (वरुणः) अत्यन्त श्रेष्ठ (राजा) और प्रकाशमान परमेश्वर (अवससृज्यात्) पृथक्-पृथक् बनाकर सिद्ध करे, वह हम लोगों को भी वैसे ही गुणवाले कामों में संयुक्त करे। हे भगवन् ! परमेश्वर ! आप हमारे (पाशान्) बन्धनों को (विमुमोक्तु) बार-बार छुड़वाइये। इसी प्रकार हम लोगों की क्रियाकुशलता में संयुक्त किये हुए प्राण आदि पदार्थ (पाशान्) सकल दरिद्ररूपी बन्धनों को (विमुमोक्तु) बार-बार छुड़वा देवें वा देते हैं॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में भी लुप्तोपमा और श्लेषालङ्कार है। परमेश्वर ने जिस-जिस गुणवाले जो-जो पदार्थ बनाये हैं, उन-उन पदार्थों के गुणों को यथावत् जानकर इन-इन को कर्म, उपासना और ज्ञान में नियुक्त करे, जैसे परमेश्वर न्याय अर्थात् न्याययुक्त कर्म करता है, वैसे ही हम लोगों को भी कर्म नियम के साथ नियुक्त कर जो बन्धनों के करनेवाले पापात्मक कर्म हैं, उनको दूर ही से छोड़कर पुण्यरूप कर्मों का सदा सेवन करना चाहिये॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

हे मनुष्या यूयं शुनःशेपो विद्वान् त्रिषु यमादित्यमह्वत् सोऽस्माभिर्हि गृभीतः संस्त्रीणि कर्मोपासनाज्ञानानि प्रकाशयति, यश्च विद्वद्भिर्द्रुपदेषु बद्धो वायुलोको गृह्यते तथा सोऽस्माभिरपि ग्राह्यो यादृशगुणपदार्थादब्धो विद्वान् वरुणो राजा परमेश्वरोऽवससृज्यात् सोऽस्माभिस्तादृशगुण एवोपयोक्तव्यः। हे भगवन् ! भवानस्माकं पाशान् विमुमोक्तु। एवमस्माभिस्संसारस्थः सूर्यादिपदार्थसमूहः सम्यगुपयोजितः सन् पाशान् सर्वान् दारिद्र्यबन्धान् पुनः पुनर्विमोचयति तथैतत्सर्वं कुरुत॥१३॥

Word-Meaning: - (शुनःशेपः) उक्तार्थो विद्वान् (हि) निश्चयार्थे (अह्वत्) आह्वयति। अत्र लडर्थे लङ्। (गृभीतः) स्वीकृतः हृग्रहोः० इति हस्य भः (त्रिषु) कर्मोपासनाज्ञानेषु (आदित्यम्) विनाशरहितं परमेश्वरं प्रकाशमयं व्यवहारहेतुं प्राणं वा (द्रुपदेषु) द्रूणां वृक्षादीनां पदानि फलादिप्राप्तिनिमित्तानि येषु तेषु (बद्धः) नियमेन नियोजितः (अव) पृथक्करणे (एनम्) पूर्वप्रतिपादितं विद्वांसम् (राजा) प्रकाशमानः (वरुणः) श्रेष्ठतमः। उत्तमव्यवहारहेतुर्वा (ससृज्यात्) पुनः पुनर्निष्पद्येत निष्पादयेद्वा। अत्र वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति नियमात्। रुग्रिकौ च लुकि। (अष्टा०७.४.९१) इत्यभ्यासस्य रुग्रिगागमौ न भवतः। दीर्घोऽकितः। (अष्टा०७.४.८३) इति दीर्घादेशश्च न भवति। (विद्वान्) ज्ञानवान् (अदब्धः) हिंसितुमनर्हः (वि) विशिष्टार्थे (मुमोक्तु) मुञ्चतु मोचयतु वा। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपः श्लुरन्तर्गतो ण्यर्थो वा (पाशान्) अधर्माचरणजन्यबन्धान्॥१३॥
Connotation: - अत्रापि श्लेषोऽलङ्कारः लुप्तोपमा च। मनुष्यैर्यथेश्वरो यं पदार्थं यादृशगुणं निर्मितवांस्तथैव तद्गुणान् बुद्ध्वा कर्मोपासनाज्ञानानि तेषु नियोजितव्यानि यथा परमेश्वरो न्याय्यं कर्म करोति, तथैवास्माभिरप्यनुष्ठातव्यम्। यानि पापात्मकानि बन्धकराणि कर्माणि सन्ति, तानि दूरतस्त्यक्त्वा पुण्यात्मकानि सदा सेवनीयानि चेति॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात लुप्तोपमा व श्लेषालंकार आहेत. परमेश्वराने ज्या ज्या गुणांचे जे जे पदार्थ निर्माण केलेले आहेत त्या त्या पदार्थांच्या गुणांना जाणून त्यांना कर्म, उपासना व ज्ञानात युक्त करावे. जसा परमेश्वर न्याय अर्थात न्याययुक्त कर्म करतो तसेच आम्हीही कर्म करावे. जे बंधनयुक्त पापात्मक कर्म आहेत, त्यांचा त्याग करून पुण्यकर्मांचे सदैव सेवन करावे. ॥ १३ ॥