आपः॑ पृणी॒त भे॑ष॒जं वरू॑थं त॒न्वे॒३॒॑ मम॑। ज्योक् च॒ सूर्यं॑ दृ॒शे॥
āpaḥ pṛṇīta bheṣajaṁ varūthaṁ tanve mama | jyok ca sūryaṁ dṛśe ||
आपः॑। पृ॒णी॒त। भे॒ष॒जम्। वरू॑थम्। त॒न्वे॑। मम॑। ज्योक्। च॒। सूर्य॑म्। दृ॒शे॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वे जल कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्ताः कीदृशा इत्युपदिश्यते।
मनुष्यैर्या आपः प्राणाः सूर्य्यं दृशे द्रष्टुं ज्योक् चिरं जीवनाय मम तन्वे वरूथं भेषजं वृणीत प्रपूरयन्ति ता यथावदुपयोजनीयाः॥२१॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A