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उ॒भा शंसा॒ नर्या॒ माम॑विष्टामु॒भे मामू॒ती अव॑सा सचेताम्। भूरि॑ चिद॒र्यः सु॒दास्त॑राये॒षा मद॑न्त इषयेम देवाः ॥

English Transliteration

ubhā śaṁsā naryā mām aviṣṭām ubhe mām ūtī avasā sacetām | bhūri cid aryaḥ sudāstarāyeṣā madanta iṣayema devāḥ ||

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Pad Path

उ॒भा। शंसा॑। नर्या॑। माम्। अ॒वि॒ष्टा॒म्। उ॒भे इति॑। माम्। ऊ॒ती इति॑। अव॑सा। स॒चे॒ता॒म्। भूरि॑। चि॒त्। अ॒र्यः। सु॒दाःऽत॑राय। इ॒षा। मद॑न्तः। इ॒ष॒ये॒म॒। दे॒वाः॒ ॥ १.१८५.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:185» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (उभा) दोनों (शंसा) प्रशंसा को प्राप्त (नर्य्या) मनुष्यों में उत्तम द्यावापृथिवी के समान माता-पिता (माम्) मेरी (अनिष्टाम्) रक्षा करें और (माम्) मुझे (उभे) दोनों (ऊती) रक्षाएँ (अवसा) औरों की रक्षा आदि के साथ (सचेताम्) प्राप्त होवें। हे (देवाः) विद्वानो ! (अर्यः) वणिया (सुदास्तराय) अतीव देनेवाले के लिये (भूरि, चित्) बहुत जैसे देवे वैसे (मदन्तः) सुखी होते हुए हम लोग (इषा) इच्छा से (इषयेम) प्राप्त होवें ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य और चन्द्रमा सबका संयोग कर प्राणियों को सुखी करते हैं तथा जैसे धनाढ्य वैश्य बहुत अन्न आदि पदार्थ देकर भिखारियों को प्रसन्न करता है, वैसे विद्वान् जन सबके प्रसन्न करने में प्रवृत्त होवें ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

उभा शंसा नर्य्या द्यावापृथिवीव मातापितरौ मामविष्टां मामुभे ऊती अवसा सचेताम्। हे देवा अर्य्यः सुदास्तराय भूरि चिन्मदन्तो वयमिषेषयेम ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (उभा) उभौ (शंसा) प्रशंसितौ (नर्य्या) नृषु साधु (माम्) (अविष्टाम्) रक्षतम् (उभे) (माम्) (ऊती) व्यवहारविद्यारक्षे (अवसा) रक्षादिना (सचेताम्) प्राप्नुताम् (भूरि) बहु (चित्) इव (अर्यः) वणिग्जनः (सुदास्तराय) अतिशयेन दात्रे (इषा) इच्छया (मदन्तः) सुखयन्तः (इषयेम) प्राप्नुयाम (देवाः) विद्वांसः ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्याचन्द्रमसौ सर्वं संयुज्य प्राणिनः सुखयतः। यथार्थधनाढ्यो वैश्यो बह्वन्नादिकं दत्वा भिक्षुकान् प्रीणाति तथा विद्वांसः सर्वेषां प्रीणने प्रवर्त्तेरन् ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्य व चंद्र सर्वांचा संयोग करून प्राण्यांना सुखी करतात व जसा धनाढ्य वैश्य पुष्कळ अन्न इत्यादी पदार्थ देऊन भिक्षुकांना प्रसन्न करतो तसे विद्वान लोकांनी सर्वांना प्रसन्न करावे. ॥ ९ ॥