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स॒मा॒नमे॒तदु॑द॒कमुच्चैत्यव॒ चाह॑भिः। भूमिं॑ प॒र्जन्या॒ जिन्व॑न्ति॒ दिवं॑ जिन्वन्त्य॒ग्नय॑: ॥

English Transliteration

samānam etad udakam uc caity ava cāhabhiḥ | bhūmim parjanyā jinvanti divaṁ jinvanty agnayaḥ ||

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Pad Path

स॒मा॒नम्। ए॒तत्। उ॒द॒कम्। उत्। च॒। एति॑। अव॑। च॒। अह॑ऽभिः। भूमि॑म्। प॒र्जन्याः॑। जिन्व॑न्ति। दिव॑म्। जि॒न्व॒न्ति॒। अ॒ग्नयः॑ ॥ १.१६४.५१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:51 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:51


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (उदकम्) जल (अहभिः) बहुत दिनों से (उत्, एति) ऊपर को जाता अर्थात् सूर्य के ताप से कण कण हो और पवन के बल से उठकर अन्तरिक्ष में ठहरता (च) और (अव) नीचे को (च) भी आता अर्थात् वर्षा काल पाय भूमि पर वर्षता है उसके (एतत्) यह पूर्वोक्त विद्वानों का ब्रह्मचर्य अग्निहोत्र आदि धर्मादि व्यवहार (समानम्) तुल्य है। इसीसे (पर्जन्याः) मेघ (भूमिम्) भूमि को (जिन्वन्ति) तृप्त करते और (अग्नयः) बिजुली आदि अग्नि (दिवम्) अन्तरिक्ष को (जिन्वन्ति) तृप्त करते अर्थात् वर्षा से भूमि पर उत्पन्न जीव जीते और अग्नि से अन्तरिक्ष, वायु, मेघ आदि शुद्ध होते हैं ॥ ५१ ॥
Connotation: - ब्रह्मचर्य आदि अनुष्ठानों में किये हुए हवन आदि से पवन और वर्षा जल की शुद्धि होती है उससे शुद्ध जल वर्षने से भूमि पर उत्पन्न हुए जीव वे तृप्त होते हैं। इससे विद्वानों का पूर्वोक्त ब्रह्मचर्यादि कर्म जल के समान है जैसे ऊपर जाता और नीचे आता वैसे अग्निहोत्रादि से पदार्थ का ऊपर जाना और नीचे आना है ॥ ५१ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

यदुदकमहभिरुदेति चावैति च तेनैतत्समानम्। अतः पर्जन्या भूमिं जिन्वन्ति। अग्नयो दिवं जिन्वन्ति ॥ ५१ ॥

Word-Meaning: - (समानम्) (एतत्) पूर्वोक्तं विदुषां कर्म (उदकम्) जलम् (उत्) (च) (एति) प्राप्नोति (अव) (च) (अहभिः) दिनैः। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति रलोपः। (भूमिम्) (पर्जन्याः) मेघाः (जिन्वन्ति) प्रीणन्ति (दिवम्) अन्तरिक्षम् (जिन्वन्ति) तर्पयन्ति (अग्नयः) विद्युतः ॥ ५१ ॥
Connotation: - ब्रह्मचर्याद्यनुष्ठानेषु कृतेन हवनादिना वायुवृष्ट्युदकशुद्धिर्जायते ततः शुद्धोदकवर्षणेन भूमिजास्तृप्यन्ति। तत एतद्विदुषां पूर्वोक्तं कर्मोदकवदस्ति ॥ ५१ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ब्रह्मचर्य इत्यादी अनुष्ठानात केलेले हवन इत्यादीमुळे वायू वृष्टिजलाची शुद्धी होते. शुद्ध जलाचा वर्षाव झाल्याने भूमीवर उत्पन्न झालेले जीव तृप्त होतात. त्यामुळे विद्वानांचे पूर्वोक्त ब्रह्मचर्य इत्यादी कर्म जलाप्रमाणे असते. जसे जल वर व खाली जाते तसे अग्निहोत्र इत्यादींनी पदार्थ वर जातात व खाली येतात. ॥ ५१ ॥