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पाक॑: पृच्छामि॒ मन॒सावि॑जानन्दे॒वाना॑मे॒ना निहि॑ता प॒दानि॑। व॒त्से ब॒ष्कयेऽधि॑ स॒प्त तन्तू॒न्वि त॑त्रिरे क॒वय॒ ओत॒वा उ॑ ॥

English Transliteration

pākaḥ pṛcchāmi manasāvijānan devānām enā nihitā padāni | vatse baṣkaye dhi sapta tantūn vi tatnire kavaya otavā u ||

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Pad Path

पाकः॑। पृ॒च्छा॒मि॒। मन॑सा। अवि॑ऽजानन्। दे॒वाना॑म्। ए॒ना। निऽहि॑ता। प॒दानि॑। व॒त्से। ब॒ष्कये॑। अधि॑। स॒प्त। तन्तू॑न्। वि। त॒त्रि॒रे॒। क॒वयः॑। ओत॒वै। ऊँ॒ इति॑ ॥ १.१६४.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (कवयः) बुद्धिमान् जन (ओतवै) विस्तार के लिये (बष्कये) देखने योग्य (वत्से) सन्तान के निमित्त (सप्त) सात (तन्तून्) विस्तृत धातुओं को (व्यधि, तत्रिरे) अनेक प्रकार से अधिक अधिक विस्तारते हैं (उ) उन्हीं (देवानाम्) दिव्य विद्वानों के (एना) इन (निहिता) स्थापित किये हुए (पदानि) प्राप्त होने वा जानने योग्य पदों को, अधिकारों को (अविजानन्) न जानता हुआ (पाकः) ब्रह्मचर्यादि तपस्या से परिपक्व होने योग्य मैं (मनसा) अन्तःकरण से (पृच्छामि) पूछता हूँ ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि बाल्यावस्था को लेकर अविदित शास्त्रों को विद्वानों से पढ़कर दूसरों को पढ़ाने से सब विद्याओं को फैलावें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये कवय ओतवै बष्कये वत्से सप्त तन्तून् व्यधि तत्रिरे तेषामु देवानामेना निहिता पदान्यविजानन् पाकोऽहं मनसा पृच्छामि ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (पाकः) ब्रह्मचर्यादितपसा परिपचनीयोऽहम् (पृच्छामि) (मनसा) अन्तःकरणेन (अविजानन्) न विजानन् (देवानाम्) दिव्यानां विदुषाम् (एना) एनानि (निहिता) स्थितानि (पदानि) पत्तुं प्राप्तुं ज्ञातुं योग्यानि (वत्से) अपत्ये (बष्कये) द्रष्टव्ये (अधि) (सप्त) (तन्तून्) विस्तृतान् धातून् (वि) विविधतया (तत्रिरे) विस्तृणन्ति (कवयः) मेधाविनः (ओतवै) विस्ताराय (उ) वितर्के ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्बाल्यावस्थामारभ्याविदितानि शस्त्राणि विद्वद्भ्यः पठित्वा सर्वा विद्या अध्यापनेन प्रसारणीयाः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी बाल्यावस्थेपासून माहीत नसलेली शास्त्रे व शस्त्रे विद्वानांकडून शिकून घ्यावीत. इतरांना शिकवून सर्व विद्यांचा प्रसार करावा. ॥ ५ ॥