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ऋ॒चो अ॒क्षरे॑ पर॒मे व्यो॑म॒न्यस्मि॑न्दे॒वा अधि॒ विश्वे॑ निषे॒दुः। यस्तन्न वेद॒ किमृ॒चा क॑रिष्यति॒ य इत्तद्वि॒दुस्त इ॒मे समा॑सते ॥

English Transliteration

ṛco akṣare parame vyoman yasmin devā adhi viśve niṣeduḥ | yas tan na veda kim ṛcā kariṣyati ya it tad vidus ta ime sam āsate ||

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Pad Path

ऋ॒चः। अ॒क्षरे॑। प॒र॒मे। विऽओ॑मन्। यस्मि॑न्। दे॒वाः। अधि॑। विश्वे॑। नि॒ऽसे॒दुः। यः। तत्। न। वेद॑। किम्। ऋ॒चा। क॒रि॒ष्य॒ति॒। ये। इत्। तत्। वि॒दुः। ते। इ॒मे। सम्। आ॒स॒ते॒ ॥ १.१६४.३९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:39 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:39


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यस्मिन्) जिस (ऋचः) ऋग्वेदादि वेदमात्र से प्रतिपादित (अक्षरे) नाशरहित (परमे) उत्तम (व्योमन्) आकाश के बीच व्यापक परमेश्वर में (विश्वे) समस्त (देवाः) पृथिवी सूर्य लोकादि देव (अधि, निषेदुः) आधेयरूप से स्थित होते हैं। (यः) जो (तत्) उस परब्रह्म परमेश्वर को (न, वेद) नहीं जानता वह (ऋचा) चार वेद से (किम्) क्या (करिष्यति) कर सकता है और (ये) जो (तत्) उस परब्रह्म को (विदुः) जानते हैं (ते) (इमे, इत्) वे ही ये ब्रह्म में (समासते) अच्छे प्रकार स्थिर होते हैं ॥ ३९ ॥
Connotation: - जो सब वेदों का परमप्रमेय पदार्थरूप और वेदों से प्रतिपाद्य ब्रह्म अमर और जीव तथा कार्यकारणरूप जगत् है, इन सभों में से सबका आधार अर्थात् ठहरने का स्थान आकाशवत् परमात्मा व्यापक और जीव तथा कार्य कारणरूप जगत् व्याप्य है, इसीसे सब जीव आदि पदार्थ परमेश्वर में निवास करते हैं। और जो वेदों को पढ़के इस प्रमेय को नहीं जानते, वे वेदों से कुछ भी फल नहीं पाते और जो वेदों को पढ़के जीव, कार्य, कारण और ब्रह्म को गुण, कर्म, स्वभाव से जानते हैं, वे सब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्ध होते आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥ ३९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरीश्वरविषयमाह ।

Anvay:

यस्मिन्नृचः सकाशात्प्रतिपादितेऽक्षरे परमे व्योमन्परमेश्वरे विश्वे देवा अधि निषेदुः। यस्तन्न वेद स ऋचा वेदेन किं करिष्यति ये तद्विदुस्त इमे इदेव ब्रह्मणि समासते ॥ ३९ ॥

Word-Meaning: - (ऋचः) ऋग्वेदादेः (अक्षरे) नाशरहिते (परमे) प्रकृष्टे (व्योमन्) व्योम्नि व्यापके परमेश्वरे (यस्मिन्) (देवाः) पृथिवीसूर्यलोकादयः (अधि) (विश्वे) सर्वे (निषेदुः) निषीदन्ति (यः) (तत्) ब्रह्म (न) (वेद) जानाति (किम्) (ऋचा) वेदचतुष्टयेन (करिष्यते) (ये) (इत्) एव (तत्) (विदुः) जानन्ति (ते) (इमे) (सम्) (आसते) सम्यगासते। अयं निरुक्ते व्याख्यातः । निरु० १३। १०। ॥ ३९ ॥
Connotation: - यत्सर्वेषां वेदानां परमं प्रमेयं प्रतिपाद्यं ब्रह्मामरं च जीवाः कार्य्यकारणाख्यं जगच्चाऽस्ति। एषां मध्यात्सर्वाधारो व्योमद्व्यापकः परमात्मा जीवाः कार्यं कारणञ्च व्याप्यमस्ति। अतएव सर्वे जीवादयः पदार्थाः परमेश्वरे निवसन्ति। ये वेदानधीत्यैतत्प्रमेयं न जानन्ति ते वेदैः किमपि फलं न प्राप्नुवन्ति। ये च वेदानधीत्य जीवान् कार्यं कारणं ब्रह्म च गुणकर्मस्वभावतो विदन्ति ते सर्वे धर्मार्थकाममोक्षेषु सिद्धेषु आनन्दन्ति ॥ ३९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सर्व वेद प्रमाणित असलेले अमर ब्रह्म व जीव आणि कार्यकारणरूपी जग आहे त्या सर्वांपैकी सर्वांचा आधार अर्थात स्थित राहण्याचे ठिकाण आकाशाप्रमाणे व्यापक परमात्मा व जीव आणि कार्यकारणरूपी जगत व्याप्य आहे. त्यामुळे सर्व जीव इत्यादी पदार्थ परमेश्वरात निवास करतात. जे वेद वाचून हे प्रमेय जाणत नाहीत ते वेदापासून कोणतेही फळ प्राप्त करू शकत नाहीत व जे वेद वाचून जीव, कार्यकारण व ब्रह्माच्या गुण, कर्म, स्वभावाला जाणतात. ते सर्व धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध करतात व आनंद प्राप्त करतात. ॥ ३९ ॥