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अ॒वः परे॑ण पि॒तरं॒ यो अ॑स्यानु॒वेद॑ प॒र ए॒नाव॑रेण। क॒वी॒यमा॑न॒: क इ॒ह प्र वो॑चद्दे॒वं मन॒: कुतो॒ अधि॒ प्रजा॑तम् ॥

English Transliteration

avaḥ pareṇa pitaraṁ yo asyānuveda para enāvareṇa | kavīyamānaḥ ka iha pra vocad devam manaḥ kuto adhi prajātam ||

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Pad Path

अ॒वः। परे॑ण। पि॒तर॑म्। यः। अ॒स्य॒। अ॒नु॒ऽवेद॑। प॒रः। ए॒ना। अव॑रेण। क॒वि॒ऽयमा॑नः। कः। इ॒ह। प्र। वो॒च॒त्। दे॒वम्। मनः॑। कुतः॑। अधि॑। प्रऽजा॑तम् ॥ १.१६४.१८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:18 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:17» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो विद्वान् (अस्य) इसके (अवः) अधोभाग से और (परेण) परभाग से वर्त्तमान (पितरम्) पालनेवाले सूर्य को (अनुवेद) विद्या पढ़ने के अनन्तर जानता है (यः) जो (परः) पर और (एना) इस उक्त (अवरेण) नीचे के मार्ग से जानता है वह (कवीयमानः) अतीव विद्वान् है और (कुतः) कहाँ से यह (देवम्) दिव्यगुणसम्पन्न (मनः) अन्तःकरण (प्रजातम्) उत्पन्न हुआ ऐसा (इह) इस विद्या वा जगत् में (कः) कौन (अधि, प्र, वोचत्) अधिकतर कहे ॥ १८ ॥
Connotation: - जो मनुष्य बिजुली को लेकर सूर्यपर्यन्त अग्नि को पिता के समान पालनेवाला जानें जिसके पराऽवर भाग में कार्यकारण स्वरूप हैं उसका उपदेश दिव्य अन्तःकरणवाले होकर इस संसार में कहें ॥ १८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो विद्वानस्यावः परेण च वर्त्तमानं पितरमनुवेद। यः पर एनाऽवरेणानुवेद स कवीयमानः कुत इदं मनः प्रजातमितीह कोऽधि प्रवोचत् ॥ १८ ॥

Word-Meaning: - (अवः) अवस्तात् (परेण) परेण मार्गेण (पितरम्) पालकं सूर्यम् (यः) (अस्य) (अनुवेद) विद्यापठनानन्तरं जानाति (परः) परस्मात् (एना) एनेन (अवरेण) मार्गेण (कवीयमानः) अतीव विद्वान् (कः) (इह) अस्यां विद्यायां जगति वा (प्र) (वोचत्) प्रवदेत् (देवम्) दिव्यगुणसंपन्नम् (मनः) अन्तःकरणम् (कुतः) (अधि) (प्रजातम्) उत्पन्नम् ॥ १८ ॥
Connotation: - ये मनुष्या विद्युतमारभ्य सूर्यपर्यन्तमग्निं पितरमिव पालकं जानीयुः। यस्य पराऽवरे कार्यकारणाख्ये स्वरूपे स्तस्तदुपदेशं दिव्यान्तःकरणा भूत्वा इह प्रवदेयुः ॥ १८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो माणूस विद्युतपासून सूर्यापर्यंत अग्नी हा पित्याप्रमाणे पालनकर्ता आहे, हे जाणतो. ज्याच्या पराऽवर (अगोदरनंतर) भागात कारण स्वरूप आहेत त्याचा उपदेश दिव्य अन्तःकरणयुक्त बनून जगाला सांगावा. ॥ १८ ॥