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सने॑मि च॒क्रम॒जरं॒ वि वा॑वृत उत्ता॒नायां॒ दश॑ यु॒क्ता व॑हन्ति। सूर्य॑स्य॒ चक्षू॒ रज॑सै॒त्यावृ॑तं॒ तस्मि॒न्नार्पि॑ता॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

English Transliteration

sanemi cakram ajaraṁ vi vāvṛta uttānāyāṁ daśa yuktā vahanti | sūryasya cakṣū rajasaity āvṛtaṁ tasminn ārpitā bhuvanāni viśvā ||

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Pad Path

सऽने॑मि। च॒क्रम्। अ॒जर॑म्। वि। व॒वृ॒ते॒। उ॒त्ता॒नाया॑म्। दश॑। यु॒क्ताः। व॒ह॒न्ति॒। सूर्य॑स्य। चक्षुः॑। रज॑सा। ए॒ति॒। आऽवृ॑तम्। तस्मि॑न्। आर्पि॑ता। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥ १.१६४.१४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:14 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (सनेमि) समान नेमि नाभिवाला (अजरम्) जरा दोष से रहित (चक्रम्) चक्र के समान वर्त्तमान कालचक्र (उत्तानायाम्) उत्तम विथरे हुए जगत् में (वि, ववृते) विशेष कर बार-बार आता है और उस कालचक्र को (दश) दश प्राण (युक्ताः) युक्त (वहन्ति) बहाते हैं। जो (सूर्यस्य) सूर्य का (चक्षुः) व्यक्ति प्रकटता करनेवाला भाग (रजसा) लोकों के साथ (आवृतम्) सब ओर से आवरण को (एति) प्राप्त होता है अर्थात् ढंप जाता है (तस्मिन्) उसमें (विश्वा) समस्त (भुवनानि) भूगोल (आर्पिता) स्थापित हैं ऐसा तुम जानो ॥ १४ ॥
Connotation: - जो विभु, नित्य और सब लोकों का आधार समय वर्त्तमान है, उसी काल की गति से सूर्य आदि लोक प्रकाशित होते हैं, ऐसा सब लोगों को जानना चाहिये ॥ १४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यत्सनेम्यजरं चक्रमुत्तानायां विववृते दश युक्ता वहन्ति यत्सूर्य्यस्य चक्षू रजसाऽऽवृतमेति तस्मिन् विश्वा भुवनान्यार्पिता सन्तीति यूयं वित्त ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (सनेमि) समानो नेमिर्यस्मिँस्तत् (चक्रम्) चक्रवद्वर्त्तमानम् (अजरम्) जरादोषरहितम् (वि) विशेषे (ववृते) पुनः पुनरावर्त्तते। अत्र तुजादीनामिति दीर्घः। (उत्तानायाम्) उत्कृष्टतया विस्तृतायां जगत्याम् (दश) प्राणाः (युक्ताः) (वहन्ति) प्रापयन्ति (सूर्यस्य) (चक्षुः) व्यक्तिकारकम् (रजसा) लोकैः सह (एति) गच्छन्ति (आवृतम्) समन्तादाच्छादितम् (तस्मिन्) (आर्पिता) स्थापितानि (भुवनानि) भूगोलाख्यानि (विश्वा) सर्वाणि ॥ १४ ॥
Connotation: - यो विभुर्नित्यः सर्वलोकाधारस्समयो वर्त्तते तस्यैव गत्या सूर्य्यादिलोकाः प्रकाशिता भवन्तीति सर्वैर्वेद्यम् ॥ १४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो काल विभू, नित्य व सर्व लोकांचा (गोलांचा) आधार आहे त्याच काळाच्या गतीने सूर्य इत्यादी लोक (गोल) प्रकाशित होतात, हे सर्व लोकांनी जाणले पाहिजे. ॥ १४ ॥