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ये यज॑त्रा॒ य ईड्या॒स्ते ते॑ पिबन्तु जि॒ह्वया॑। मधो॑रग्ने॒ वष॑ट्कृति॥

English Transliteration

ye yajatrā ya īḍyās te te pibantu jihvayā | madhor agne vaṣaṭkṛti ||

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Pad Path

ये। यज॑त्राः। ये। ईड्याः॑। ते। ते॒। पि॒ब॒न्तु॒। जि॒ह्वया॑। मधोः॑। अ॒ग्ने॒। वष॑ट्ऽकृति॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:14» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:27» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उक्त पदार्थ किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - (ये) जो मनुष्य विद्युत् आदि पदार्थ (यजत्राः) कलादिकों में संयुक्त करते हैं (ते) वे, वा (ये) जो गुणवाले (ईड्याः) सब प्रकार से खोजने योग्य हैं (ते) वे (जिह्वया) ज्वालारूपी शक्ति से (अग्ने) अग्नि में (वषट्कृति) यज्ञ के विशेष-विशेष काम करने से (मधोः) मधुरगुणों के अंशों को (पिबन्तु) यथावत् पीते हैं॥८॥
Connotation: - मनुष्यों को इस जगत् में सब संयुक्त पदार्थों से दो प्रकार का कर्म करना चाहिये अर्थात् एक तो उनके गुणों का जानना, दूसरा उनसे कार्य्य की सिद्धि करना। जो विद्युत् आदि पदार्थ सब मूर्त्तिमान् पदार्थों से रस को ग्रहण करके फिर छोड़ देते हैं, इससे उनकी शुद्धि के लिये सुगन्धि आदि पदार्थों का होम निरन्तर करना चाहिये, जिससे वे सब प्राणियों को सुख सिद्ध करनेवाले हों॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशाः सन्तीत्युपदिश्यते।

Anvay:

ये मनुष्या यजत्रास्ते तथा य ईड्यास्ते जिह्वयाऽग्नेऽग्नौ वषट्कृति मधोर्मधुरगुणांशान् पिबन्तु यथावत् पिबन्ति॥८॥

Word-Meaning: - (ये) विद्युदादयः (यजत्राः) सङ्गमयितुं योग्याः। पूर्ववदस्य सिद्धिः। (ईड्यः) अध्येषितुं योग्याः (ते) पूर्वोक्ता जगतीश्वरेणोत्पादिताः (ते) वर्त्तमानाः (पिबन्तु) पिबन्ति। अत्र लडर्थे लोट्। (जिह्वया) ज्वालाशक्त्या (मधोः) मधुरगुणांशान्। (अग्ने) अग्नौ। अत्र व्यत्ययः। (वषट्कृति) वषट् करोति येन यज्ञेन तस्मिन्। अत्र कृतो बहुलम् इति वार्त्तिकमाश्रित्य करणे क्विप्॥८॥
Connotation: - मनुष्यैरस्मिन् जगति सर्वेषु पदार्थेषु द्विविधं कर्म योजनीयमेकं गुणज्ञानं द्वितीयं तेभ्यः कार्य्यसिद्धिकरणम्। ये विद्युदादयः सर्वेभ्यो मूर्त्तद्रव्येभ्यो रसं सङ्गृह्य पुनर्विमुञ्चन्ति तेषां शुद्ध्यर्थं सुगन्ध्यादिपदार्थानां अग्नौ प्रक्षेपणं नित्यं कार्य्यं यतस्ते सुखसाधिनो भवेयुः॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी या जगात सर्व संयुक्त पदार्थांनी दोन प्रकारचे कर्म केले पाहिजे. अर्थात एक तर त्यांचे गुण जाणणे, दुसरे त्यांच्याद्वारे कार्याची सिद्धी करणे. जे विद्युत इत्यादी पदार्थ सर्व मूर्तिमान पदार्थांपासून रसग्रहण करून पुन्हा सोडून देतात. त्यामुळे त्यांच्या शुद्धीसाठी सुगंधित पदार्थांचा होम निरंतर केला पाहिजे. ज्यामुळे ते सर्व प्राण्यांचे सुख सिद्ध करणारे व्हावेत. ॥ ८ ॥