Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
केश के बढ़ाने का उपदेश।
Word-Meaning: - (केशवर्धनीम्) केश बढ़ानेवाली (याम्) जिस [नितत्नी ओषधि] को (जमदग्निः) जलती अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ने (दुहित्रे) पूर्ति करनेवाली क्रिया के लिये (अखनत्) खोदा है। (ताम्) उस [ओषधि] को (वीतहव्यः) पाने योग्य पदार्थ का पानेवाला ऋषि (असितस्य) मुक्तस्वभाव महात्मा के (गृहेभ्यः) घरों से (आ अभरत्) लाया है ॥१॥
Connotation: - इस सूक्त में (नितत्नी) पद की अनुवृत्ति गत सूक्त से आती है। जिस प्रकार से वैद्य जनपरम्परा से एक दूसरे के पीछे शिक्षा पाते चले आये हैं, वैसे ही मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते रहें ॥१॥
Footnote: १−(याम्) नितत्नीम्−गतसूक्तात् (जमदग्निः) अ० २।३२।३। प्रज्वलिताग्निवत्तेजस्वी (अखनत्) खननेन प्राप्तवान् (दुहित्रे) प्रपूरयित्रीक्रियायै (केशवर्धनीम्) केशवृद्धिकरीम् (ताम्) ओषधिम् (वीतहव्यः) वी गतौ−क्त+हु आदाने यत्। प्राप्तप्राप्तव्यः पुरुषः (असितस्य) षिञ् बन्धने−क्त। अबद्धस्य। मुक्तस्वभावस्य (गृहेभ्यः) गेहेभ्यः सकाशात् ॥