वांछित मन्त्र चुनें

यां ज॒मद॑ग्नि॒रख॑नद्दुहि॒त्रे के॑श॒वर्ध॑नीम्। तां वी॒तह॑व्य॒ आभ॑र॒दसि॑तस्य गृ॒हेभ्यः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याम् । जमत्ऽअग्नि:। अखनत् । दुहित्रे । केशऽवर्धनीम् । ताम् । वीतऽहव्य: । आ । अभरत् । असितस्य । गृहेभ्य: ॥१३७.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:137» पर्यायः:0» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

केश के बढ़ाने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (केशवर्धनीम्) केश बढ़ानेवाली (याम्) जिस [नितत्नी ओषधि] को (जमदग्निः) जलती अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ने (दुहित्रे) पूर्ति करनेवाली क्रिया के लिये (अखनत्) खोदा है। (ताम्) उस [ओषधि] को (वीतहव्यः) पाने योग्य पदार्थ का पानेवाला ऋषि (असितस्य) मुक्तस्वभाव महात्मा के (गृहेभ्यः) घरों से (आ अभरत्) लाया है ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस सूक्त में (नितत्नी) पद की अनुवृत्ति गत सूक्त से आती है। जिस प्रकार से वैद्य जनपरम्परा से एक दूसरे के पीछे शिक्षा पाते चले आये हैं, वैसे ही मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते रहें ॥१॥
टिप्पणी: १−(याम्) नितत्नीम्−गतसूक्तात् (जमदग्निः) अ० २।३२।३। प्रज्वलिताग्निवत्तेजस्वी (अखनत्) खननेन प्राप्तवान् (दुहित्रे) प्रपूरयित्रीक्रियायै (केशवर्धनीम्) केशवृद्धिकरीम् (ताम्) ओषधिम् (वीतहव्यः) वी गतौ−क्त+हु आदाने यत्। प्राप्तप्राप्तव्यः पुरुषः (असितस्य) षिञ् बन्धने−क्त। अबद्धस्य। मुक्तस्वभावस्य (गृहेभ्यः) गेहेभ्यः सकाशात् ॥