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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
शत्रुओं के हराने का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे परमेश्वर !] (तिस्रः) तीनों [उत्कृष्ट, निकृष्ट, मध्यम] (दिवः) प्रकाशों को (उत) और (इमाः) इन (तिस्रः) तीनों (पृथिवीः) पृथिवियों को (अति अतृणत्) तूने आर-पार छेदा है। (त्वया) तेरे साथ (अहम्) मैं (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाले की (जिह्वाम्) जीभ को और (वचांसि) वचनों को (नि) दृढ़ता से (तृणद्भि) छेदता हूँ ॥४॥
Connotation: - जो मनुष्य परमात्मा को त्रिकालपति और त्रिलोकीनाथ जानकर पुरुषार्थ करते हैं, वे अन्यथाकारी शत्रुओं को वश में रखते हैं ॥४॥
Footnote: ४−(तिस्रः) त्रिविधाः, उत्तमनिकृष्टमध्यमरूपेण (दिवः) प्रकाशान् (अति) अतीत्य (अतृणत्) उतृदिर् हिंसानादरयोः-लङ्, मध्यमपुरुषस्यैकवचनम् अतृणः। छिन्नवानसि (तिस्रः) (इमाः) दृश्यमानाः (पृथिवीः) (उत) अपि (त्वया) (अहम्) (दुर्हार्दः) दुष्टहृदयस्य (जिह्वाम्) रसनाम् (नि) दृढम् (तृणद्मि) छिनद्मि (वचांसि) वचनानि ॥४॥