मनुष्यों का पितरों के साथ कर्त्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (इमम्) इस [ब्रह्मचारी] को (जीवाः) प्राणधारी [आचार्य आदि] लोगों ने (गृहेभ्यः) घरों केहित के लिये (अप) आनन्द से (अरुधन्) रोका था, (तम्) उस [ब्रह्मचारी] को (इतः) इस (ग्रामात्) ग्राम [विद्यालय] से (परि) सब ओर को (निः) निश्चय करके (वहत) तुम लेजाओ। (मृत्युः) मृत्यु [आत्मत्याग] (यमस्य) संयमी पुरुष का (दूतः) उत्तेजक, (प्रचेतः) ज्ञान करनेवाला (आसीत्) हुआ है, उसने (पितृभ्यः) पितरों [रक्षकमहात्माओं] को (असून्) प्राण (गमयाम् चकार) भेजे हैं ॥२७॥
Connotation: - आचार्य लोगब्रह्मचारियों को विद्यालय में उत्तम शिक्षा देने तक रक्खें और विद्यासमाप्तिपर उन को उपदेश करें कि वे परिश्रम के साथ आत्मत्याग करके अर्थात् आपा छोड़ करसंसार का उपकार करें, जैसे कि महात्मा लोग आपा छोड़कर विद्या द्वारा आत्मबलप्राप्त करके उपकारी होते हैं ॥२७॥यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधिअन्त्येष्टिप्रकरण में उद्धृत है ॥