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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
शारीरिक और मानसिक रोग हटाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (आसाम्) इन [गण्डमालाओं] में से (प्रथमाम्) पहिली को (विध्यामि) छेदता हूँ, (उत) और (मध्यमाम्) बीचवाली को (विध्यामि) तोड़ता हूँ। (आसाम्) इनमें से (जघन्याम्) नीचेवाली को (इदम्) अभी (आ) सब ओर (छिनद्मि) मैं छिन्न-भिन्न करता हूँ (इव) जैसे (स्तुकाम्) उनके बाल को ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य रोगों के नाश करने में बहुत शीघ्रता करें ॥२॥
टिप्पणी: २−(विध्यामि) छिनद्मि विदारयामि (आसाम्) अपचितां मध्ये (प्रथमाम्) मुख्याम् (विध्यामि) (उत) (मध्यमाम्) (इदम्) इदानीम् (जघन्याम्) हन यङ् लुक्-अच्। पृषोदरादिरूपम् यद्वा। जघन-यत्, इवार्थे। अधमाम् (आसाम्) (आ) समन्तात् (छिनद्मि) भिनद्मि (स्तुकाम्) ष्टुच प्रसादे-क, टाप्, कुत्वम्। ऊर्णस्तुकाम्। रोमस्तोकमात्राम् (इव) यथा ॥