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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रोग के नाश का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (बलास) हे सन्निपात कफ आदि रोग ! (यौ) जो (ते) तेरी (मुष्कौ) दो गिलटिया (कक्षे) [रोगी की] काँख में (अपश्रितौ) आश्रय लिये हुए (तिष्ठतः) स्थित हैं। (अहम्) मैं (तस्य भेषजम्) उसकी ओषधि (वेद) जानता हूँ, (चीपुद्रुः) ग्रहण करने योग्य चीपुद्रु [ओषधि विशेष] (अभिचक्षणम्) औषध है ॥२॥
भावार्थभाषाः - वैद्य ज्वर, गिलटी आदि रोगों की यथावत् चिकित्सा करे ॥२॥
टिप्पणी: २−(यौ) (ते) तव (बलास) म० १। (तिष्ठतः) वर्तेते (कक्षे) रोगिणो बाहुमूले (मुष्कौ) अण्डरूपौ रोगग्रन्थी (अपश्रितौ) आश्रितौ (वेद) जानामि (अहम्) वैद्यः (तस्य) रोगस्य (भेषजम्) (चीपुद्रुः) चीवृ आदानसंवरणयोः−उ, पृषोदरादि। द्रुमविशेषः (अभिचक्षणम्) व्याधिनिवर्तकम् ॥