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अप्र॑पा॒णा च॑ वेश॒न्ता रे॒वाँ अप्रति॑दिश्ययः। अय॑भ्या क॒न्या कल्या॒णी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप्रपाणा । च । वेशन्ता । रेवान् । अप्रतिदिश्यय: ॥ अयभ्या । कन्या । कल्याणी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.८॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:128» पर्यायः:0» मन्त्र:8


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (च) जैसे (अप्रपाणा) बिन पनघटवाला (वेशन्ता) सरोवर है, [वैसे ही] (अप्रतिदिश्ययः) प्रतिदान का न करनेवाला (रेवान्) धनवान् और (अयभ्या) मैथुन के अयोग्य [रोग आदि से पीड़ित, सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ] (कल्याणी) सुन्दर (कन्या) कन्या है, (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥८॥
भावार्थभाषाः - बिना पनघट के जल से भरा सरोवर, बिना प्रतिदान के बड़ा धनी, और बिना सन्तान उत्पन्न करने के रूपवती स्त्री निष्फल है ॥८॥
टिप्पणी: ८−(अप्रपाणा) विभक्तेराकारः-पा० ७।१।३९। पानस्थानशून्यः, (च) उपमार्थे (वेशन्ता) सरोवरः। तडागः (रेवान्) धनवान् (अप्रतिदिश्ययः) दिश दाने-क्यप्+या प्रापणे-ड। अप्रतिदानप्रापकः (अयभ्या) पोरदुपधात्। पा० ३।१।९८। यभ मैथुने-यत्। अमैथुनयोग्या। रोगादिवशात् सन्तानोत्पादने असमर्था (कन्या) (कल्याणी) सुन्दरी। अन्यद् गतम् ॥