वांछित मन्त्र चुनें
देवता: इन्द्र: ऋषि: वत्सः काण्वः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

अ॒भि व्र॒जं न त॑त्निषे॒ सूर॑ उपा॒कच॑क्षसम् । यदि॑न्द्र मृ॒ळया॑सि नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi vrajaṁ na tatniṣe sūra upākacakṣasam | yad indra mṛḻayāsi naḥ ||

पद पाठ

अ॒भि । व्र॒जम् । न । त॒त्नि॒षे॒ । सूरः॑ । उ॒पा॒कऽच॑क्षसम् । यत् । इ॒न्द्र॒ । मृ॒ळया॑सि । नः॒ ॥ ८.६.२५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:25 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:25


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

उस परमदेव का अनुग्रह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र (यद्) जब तू (न+मृलयासि) हम आश्रितजनों के ऊपर प्रसन्न होता है। (न) तब (सूरः) सर्वधनप्रेरक तू (व्रजम्) हमारे गोस्थान को (उपाकचक्षसम्) परम दर्शनीय बनाकर (अभि) सब तरह से (तत्निषे) विस्तार करता है। हे भगवन् ! यह तेरी महती कृपा है ॥२५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा हमारा पिता है, हमारे सुचरित को देखकर प्रसन्न होता, अभीष्ट फल देता, लोक में यशस्वी बनाता है। अतः हे मनुष्यों ! उसी को प्रसन्न करने के लिये यत्न करो ॥२५॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यत्) जब (नः) हमको आप (मृळयासि) सुखी करते हैं, तब (सूरः) प्राज्ञ आप (न) उसी समय (उपाकचक्षसम्) समीपवर्ती (व्रजम्) देश को (अभि) भले प्रकार (तत्निषे) समृद्ध बना देते हैं ॥२५॥
भावार्थभाषाः - हे सबके पालक परमेश्वर ! आप हमारे समीपस्थ प्रदेशों को समृद्धशाली तथा उन्नत करें, जिससे हम लोग सुख-सम्पन्न होकर सदा वैदिक कर्मानुष्ठान में प्रवृत्त रहें ॥२५॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

तस्य परमदेवस्यानुग्रहं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यद्=यदा त्वम्। नोऽस्मान्। मृलयासि=मृडयसि=सुखयसि। अस्मासु प्रसीदसि। न=तदा। सूरः=सर्वधनप्रेरकस्त्वम्। अस्माकं व्रजम्। गोष्ठम्=गवां स्थानम्। उपाकचक्षसम्=परमदर्शनीयं कृत्वा। अभि=अभितः परितः। तत्निषे=विस्तारयसि। बहुभिर्गोभिः पूर्णं करोषीत्यर्थः ॥२५॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यत्) यदा (नः) अस्मान् (मृळयासि) सुखयसि तदा (सूरः) प्राज्ञस्त्वम् (न) सम्प्रत्येव (उपाकचक्षसम्) समीपवर्तिनम् (व्रजम्) देशम् (अभि) सम्यक् (तत्निषे) वर्धयसि ॥२५॥