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ऊ॒र्ध्वा हि ते॑ दि॒वेदि॑वे स॒हस्रा॑ सू॒नृता॑ श॒ता । ज॒रि॒तृभ्यो॑ वि॒मंह॑ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ūrdhvā hi te dive-dive sahasrā sūnṛtā śatā | jaritṛbhyo vimaṁhate ||

पद पाठ

ऊ॒र्ध्वा । हि । ते॒ । दि॒वेऽदि॑वे । स॒हस्रा॑ । सू॒नृता॑ । श॒ता । ज॒रि॒तृऽभ्यः॑ । वि॒ऽमंह॑ते ॥ ८.४५.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:45» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:44» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) वह शुद्ध और दृढ़व्रती जीवात्मा (अस्माकम्) हमारे (सु+रथम्) शरीररूप सुन्दर रथ को (सातये) अभीष्ट लाभ के लिये (पुरः+कृणोतु) इस संसार में सबके आगे करे अर्थात् इस शरीर को यशस्वी बनावे (यम्) जिस अन्तरात्मा को (धूर्तयः) हिंसक पापाचार (न+धूर्वन्ति) हिंसित नहीं कर सकते ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो आत्मा पापाचरणों से रहित और सदाचारों से सुभूषित और विवेकी है, वही स्वाधार शरीर को जगत् में श्रेष्ठ और पूज्य बनाता है। अतः हे मनुष्यों ! आत्मकल्याण के मार्गों के तत्त्वविद् पुरुषों की शिक्षा पर चलकर अपने को सुधारो ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - स इन्द्रः। अस्माकम्। सु=शोभनम्। रथम्। सातये=लाभाय। पुरः=अग्रे। कृणोतु=करोति। यमिन्द्रम्। धूर्तयः=हिंसकाः पापाचाराः। न धूर्वन्ति=न हिंसन्ति ॥९॥