इ॒मां गा॑य॒त्रव॑र्तनिं जु॒षेथां॑ सुष्टु॒तिं मम॑ । इन्द्रा॑ग्नी॒ आ ग॑तं नरा ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
imāṁ gāyatravartaniṁ juṣethāṁ suṣṭutim mama | indrāgnī ā gataṁ narā ||
पद पाठ
इ॒माम् । गा॒य॒त्रऽव॑र्तनिम् । जु॒षेथा॑म् । सु॒ऽस्तु॒तिम् । मम॑ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । आ । ग॒त॒म् । न॒रा॒ ॥ ८.३८.६
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:38» मन्त्र:6
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:6
| मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:6
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शिव शंकर शर्मा
पुनः उसी को कहते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) हे क्षत्रिय तथा ब्राह्मण यद्वा हे राजन् तथा हे दूत ! (तस्य+बोधतम्) उस विष को अच्छे प्रकार आज जानें कि (वाम्) आप लोगों के लिये (नरः) ये प्रजाजन (अद्रिभिः) पर्वतसमान परिश्रमों से (मदिरम्) आनन्दप्रद (इदम्+मधु) इस कृषिकर्मादि द्वारा मधुर-२ वस्तु (अधुक्षन्) पैदा कर रहे हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - ब्राह्मण और क्षत्रिय को प्रसन्न और सुखी रखने के लिये ये प्रजाजन अति परिश्रम से नाना वस्तु पैदा कर रहे हैं, यह बात इन्हें भूलना न चाहिये, किन्तु स्मरण रख सबकी रक्षा में ये प्रवृत्त रहें ॥३॥
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शिव शंकर शर्मा
पुनस्तदेवाह।
पदार्थान्वयभाषाः - नरः=इतरे जनाः। वाम्=युवयोर्निमित्तम्। अद्रिभिः= पर्वतसदृशैः परिश्रमैः। मदिरम्=मदकरमानन्दप्रदम्। इदं मधु=इदं क्षीरादिमधुरं वस्तु। अधुक्षन्=दुहति। हे इन्द्राग्नी तस्य बोधतम् ॥३॥